विषयमयरहरपडिया भविया उत्तारिया जेहिं।। १५७।।
अहो, जगतमां धन्य होय तो ते आवा धर्मात्मा छे के जेओ दर्शन–ज्ञानरूपी बे बळवान
पडेला भव्यजीवोने पण पार उतारे छे. आवा भगवंतो जगतमां धन्य छे. आचार्यदेव प्रमोदथी
कहे छे के अहो, जेओ सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान सहित छे, ते उपरांत चिदानंदस्वरूपमां लीन
थया छे, ए रीते उत्तम आराधना वडे संसारने तरे छे–तेमनो अवतार सफळ छे, अने बीजा
जीवोने पण तेओ आराधनामां जोडीने संसारथी पार उतारे छे–आवा भगवंतो धन्य छे.
संसारसमुद्रमां पडेला जीवोने सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानरूपी बे हाथना अवलंबन वडे पार
उतार्या. हे भगवान! आप धन्य छो... पोताने तरतां आवडे ते ज बीजाने तारवानुं निमित्त
थाय. आ जगतना प्राणीओ चैतन्यने चूकीने विषयकषायथी भरेला भवसमुद्रमां डुबी रह्या छे,
त्यां महाआराधक संतो पोते तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी आराधनाथी तर्या ने बीजा भव्य
जीवोने तेनो मार्ग दर्शावीने भवथी पार उतार्या. कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के अहो! धन्या ते
भगवंता! सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान तो तेमना बे मुख्य हाथ छे, तेना बळे भव्यजीवोने तारे
छे. आवा संतधर्मात्मा के ईन्द्रोवडे पण पूज्य छे, जगतमां ते ज खरेखर धन्य छे. ए सिवाय
बीजा वैभाववाळाने के राजा–महाराजाओने पण खरेखर धन्य कहेता नथी. आम जाणीने तुं
आराधक जीवो प्रत्ये भक्तिथी आराधनानो उत्साह कर, –एम उपदेश छे.