पूर्ण शुद्धात्मानी प्राप्ति थाय छे ने सर्वे मोहनो नाश थाय छे. –बधाय तीर्थंकर भगवंतो अने
मुनिवरो आ ज एक उपायथी मोहनो नाश करीने मुक्ति पाम्या.. ने तेमनी वाणीद्वारा जगतने
पण आ एक ज मार्ग उपदेश्यो. आ एकज मार्ग छे ने बीजो मार्ग नथी–एम पहेलां कह्युंज हतुं;
ने अहीं गाथा ८६ मां कह्युं के सम्यक्प्रकारे श्रुतना अभ्यासथी, तेमां क्रीडा करतां तेना संस्कारथी
विशिष्ट ज्ञानसंवेदननी शक्तिरूप संपदा प्रगट करतां, आनंदना उद्भेद सहित भावश्रुतज्ञानवडे
वस्तुस्वरूप जाणतां मोहनो नाश थाय छे. आरीते भावज्ञानना अवलंबनवडे द्रढ परिणामथी
द्रव्यश्रुतनो सम्यक् अभ्यास ते मोहक्षयनो उपाय छे. –आथी एम न समजवुं के पहेलां कहयो
हतो ते उपाय अने अहीं कहयो ते उपाय जुदा प्रकारनो छे; कांई जुादा जुदा बे उपाय नथी. एक
ज प्रकारनो उपाय छे, ते जुदी जुदी शैलीथी समजाव्यो छे. अरिहंतदेवनुं स्वरूप ओळखवा जाय
तो तेमां आगमनो अभ्यास आवी ज जाय छे, केमके आगम वगर अरिहंतनुं स्वरूप क्यांथी
जाणशे? अने सम्यक् द्रव्यश्रुतनो अभ्यास करवामां पण सर्वज्ञनी ओळखाण भेगी आवे ज छे,
केमके आगमना मूळ प्रणेता तो सर्वज्ञ अरिहंतदेव छे, तेमनी ओळखाण विना आगमनी
ओळखाण थाय नहि.
मोहना नाशनो मूळ उपाय तो आ ज छे के शुद्ध चेतनाथी व्याप्त एवा द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप शुद्ध
आत्मामां स्वसन्मुख थवुं. अहीं एकला शास्त्रना अभ्यासनी वात नथी करी, पण ‘भावश्रुतना
अवलंबनवडे द्रढ करेला परिणामथी सम्यक् प्रकारे अभ्यास’ करवानुं कहयुं छे. भावश्रुत त्यारे ज थाय
के ज्यारे द्रव्यश्रुतना वाच्यरूप शुद्धआत्मा तरफ ज्ञाननो झूकाव थाय. –आवा प्रकारना द्रढ अभ्यासथी
अवश्य सम्यग्दर्शन थाय छे.