भादरवो: २४८९ : ९ :
विशिष्ट स्वसंवेदन शक्तिरूप संपदा प्रगट करीने, आनंदना फूवारा सहित प्रत्यक्षादि प्रमाणथी यथार्थ
वस्तुस्वरूप जाणतां मोहनो क्षय थाय छे. अहो, मोहना नाशनो अमोघ उपाय–कदी निष्फळ न जाय
एवो अफर उपाय संतोए प्रसिद्ध कर्यो छे.
विकल्प विनानी ज्ञाननी वेदना केवी छे–तेनुं अंतर्लक्ष करवुं तेनुं नाम भावश्रुतनुं लक्ष छे.
सगनी अपेक्षा छोडीने स्वनुं लक्ष करतां भावश्रुत खीले छे, ने ते भावश्रुतमां आनंदना फूवारा छे.
प्रत्यक्ष सहितनुं परोक्ष प्रमाण होय तो ते पण आत्माने यथार्थ जाणे छे. प्रत्यक्षनी अपेक्षा वगरनुं
एकलुं परोक्षज्ञान तो परालंबी छे, ते आत्मानुं यथार्थ संवेदन करी शकतुं नथी. आत्मा तरफ झूकीने
प्रत्यक्ष थयेलुं ज्ञान, अने तेनी साथे अविरुद्ध एवुं परोक्षप्रमाण, तेनाथी आत्माने जाणतां अंदरथी
आनंदना झरणां वहे छे, –आ सम्यग्दर्शन प्राप्त करवानो ने मोहनो नाश करवानो अमोघ उपाय छे.