Atmadharma magazine - Ank 239
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म: २३९
द्रव्यश्रुतना रहस्यना ऊंडा विचारमां ऊतरे त्यां मुमुक्षुने एम थाय के आहा! आमां आवी
गंभीरता छे!! राजा पग धोतो होय ने जे मजा आवे–तेना करतां श्रुतना सूक्ष्म रहस्योना उकेलमां जे
मजा आवे–ते तो जगतथी जुदी जातनी छे. श्रुतना रहस्यना चिंतननो रस वधतां जगतना विषयोने
रस ऊडी जाय छे. अहो, श्रुतज्ञानना अर्थना चिंतनवडे मोहनी गांठ तूटी जाय छे. श्रुतनुं रहस्य ज्यां
ख्यालमां आव्युं के अहो, आ तो चिदानंदस्वभावमां स्वसन्मुखता करावे छे... वाह! भगवाननी
वाणी! वाह, दिगंबर संतो! –ए तो जाणे उपरथी सिद्धभगवान ऊतर्या! अहा, भावलिंगी दिगंबर
संतमुनिओ! –ए तो आपणा परमेश्वर छे, ए तो भगवान छे. भगवाननी वाणी ने कुंदकुंदाचार्य,
पूज्यपादस्वामी, धनसेनस्वामी, वीरसेनस्वामी, जिनसेनस्वामी, नेमिचंद्रसिद्धांतचक्रवर्ती,
समन्तभद्रस्वामी, अमृतचंद्रस्वामी, पद्मप्रभस्वामी, अकलंकस्वामी, विद्यानंदस्वामी, उमास्वामी,
कार्तिकेयस्वामी ए बधाय सन्तोए अलौकिक काम कर्या छे.
“वाह दिगंबर सन्तो! ए तो आपणा परमेश्वर!”

अहा! सर्वज्ञनी वाणी अने सन्तोनी वाणी चैतन्यशक्तिना रहस्यो खोलीने आत्मस्वभावनी
सन्मुखता करावे छे, एवी वाणीने ओळखीने तेमां क्रीडा करतां, तेनुं चिंतन–मनन करतां ज्ञानना
विशिष्ट संस्कार वडे आनंदनी स्फुरणा थाय छे, आनंदना फूवारा फूटे छे, आनंदना झरा झरे छे. जुओ,
आ श्रुतज्ञाननी क्रीडानो लोकोत्तर आनंद! हजी श्रुतनो पण जेने निर्णय न होय ते शेमां क्रीडा करशे?
अहीं तो जेणे भूमिकामां गमन कर्युं छे एटले देव–गुरु–शास्त्र केवा होय तेनी कंईक ओळखाण करी छे
ते जीव कई रीते आगळ वधे छे ने कई रीते मोहनो नाश करीने सम्यक्त्व प्रगट करे छे–तेनी आ वात
छे. द्रव्यश्रुतमां भगवाने एवी वात करी छे के जेना अभ्यासथी आनंदना फूवारा छूटे! भगवान
आत्मामां आनंदनुं सरोवर भर्युं छे, तेनी सन्मुखताना अभ्यासथी एकाग्रता वडे आनंदना फूवारा
छूटे छे. अनुभूतिमां आनंदना झरा चैतन्य–सरोवरमांथी वहे छे.
आचार्यदेवे कह्युं हतुं के हे भव्य श्रोता! तुं अमारा निजवैभवनी–स्वानुभवनी आ वातने तारा
स्वसंवेदन–प्रत्यक्षथी प्रमाण करजे. एकत्वस्वभावनो अभ्यास करतां अंतरमां स्वसन्मुख स्वसंवेदन
जाग्युं त्यारे ते जीव द्रव्यश्रुतना रहस्यने पाम्यो. ज्यां एवुं रहस्य पाम्यो त्यां अंतरनी अनुभूतिमां
आनंदना झरणां झरवा मांड्यां... शास्त्रना अभ्यासथी, तेना संस्कारथी