पडवा मांडे... अने जेनुं ऊंडुं अंतर्मथन करतां क्षणवारमां मोह क्षय पामे
एवो अमोघ उपाय सन्तोए दर्शाव्यो छे. जगतमां घणो ज विरल घणो
ज दुर्लभ एवो जे सम्यक्त्वादिनो मार्ग, ते आ काळे सन्तोना प्रतापे
सुगम बन्यो छे... ए खरेखर मुमुक्षु जीवोना कोई महान सदभाग्य छे.
आवो अलभ्य अवसर पामीने संतोनी छायामां बीजुं बधुं भूलीने
आपणे आपणा आत्महितना प्रयत्नमां कटिबद्ध थईए... ए ज
भावना. –ब्र. ह. जैन.
स्वभावनी सन्मुखता वडे लीन थईने, मोहनो क्षय करीने जेओ सर्वज्ञ अरिहंत
पहेलां एम बताव्युं के भगवान अर्हंतदेवनो आत्मा द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेथी शुद्ध छे, एमना
आत्माना शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायने ओळखीने, पोताना आत्माने तेनी साथे मेळवतां, ज्ञान अने
रागनुं भेदज्ञान थईने, स्वभाव अने परभावनुं पृथक्करण थईने, ज्ञाननो उपयोग
अंतरस्वभावमां वळे छे, त्यां एकाग्र थतां गुण–पर्यायना भेदनो आश्रय पण छूटी जाय छे, ने
गुणभेदनो विकल्प छूटीने, पर्याय शुद्धात्मामां अंतर्लीन थाय छे; पर्याय अंतर्लीन थतां मोहनो
क्षय थाय छे.
प्रथमभूमिकामां गमन कर्युं छे एवा जीवनी वात छे. सर्वज्ञभगवान केवा होय? मारो आत्मा
केवो छे? मारा आत्मानुं स्वरूप समजीने मारे मारुं हित करवुं छे–एवुं जेने लक्ष होय ते जीव
मोहना नाशने माटे शास्त्रनो अभ्यास क्या प्रकारे करे? ते बतावे छे. ते जीव सर्वज्ञोपज्ञ एवा
द्रव्यश्रुतने प्राप्त करीने, एटले के भगवानना कहेला साचा आगम केवा होय तेनो निर्णय करीने,
पछी तेमां ज क्रीडा करे छे... एटले आगममां भगवाने शुं कह्युं छे–तेना निर्णय माटे सतत
अंतर मंथन करे छे. द्रव्यश्रुतना वाच्यरूप शुद्धआत्मा केवो छे तेनुं चिंतन–मनन करवुं–एनुं ज
नाम द्रव्यश्रुतमां क्रीडा छे.