Atmadharma magazine - Ank 239
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 61

background image
: ६: आत्मधर्म: २३९
वीतरागप्रणीत साचो मोक्षमार्ग प्रकाशित थयो; अने वांचन–मनन, तत्त्वज्ञान भक्ति, वैराग्य,
ब्रह्मचर्य आदि शुभभावोनी अंदर पण नवुं तेज प्रगट्युं.
आ कुमारिका बहेनोए ब्रह्मचर्य ग्रहण करी सत्संगने अर्थे बधुं न्योच्छावर करवाना जे
शुभ भाव प्रगटाव्या छे ते अति प्रशंसनीय छे. श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे के –प्रथम तो सर्व
साधनने गौण जाणी, मुमुक्षु जीवे एक सत्संग ज सर्वार्पणपणे उपासवा योग्य छे. एनी
उपासनामां सर्व साधनो आवी जाय छे. जेने ए साक्षीभाव प्रगट थयो छे के आ ज सत्पुरुष छे,
अने आ ज सत्संग छे, –एणे तो पोताना दोषो कार्ये कार्ये, प्रसंगे प्रसंगे, क्षणेक्षणे जोवा, जोईने
ते परिक्षीण करवा, अने सत्संगने प्रतिबंधक जे कांई होय एने देहत्यागना जोखमे पण छोडवुं;
देहत्यागनो प्रसंग आवे तोपण ए सत्संगने गौण करवा योग्य नथी. आवा मळेला सत्संगने
आपणे सर्वे पुरुषार्थथी आराधीए. आ बहेनोए सत्संगने अर्थे सर्वस्व न्योच्छावर करवानी जे
भावना प्रगटावी छे ते आपणने पण पुरुषार्थप्रेरक हो. नाना नाना प्रसंगोमां पण सत्संगने
आपणे आवरण न करीए, अने नाना कल्पित सुखोनी अंदर आपणे अनंतभवनुं दुःख
टाळवानो जे प्रयत्न एने न भूलीए. आजे आ ब्रह्मचारी बहेनोए जे असिधाराव्रत लीधुं छे
तेनाथी तेमणे तेमना कुळने उज्वळ कर्युं छे अने साराय मुमुक्षुमंडळनुं तेमणे गौरव वधार्युं छे.
तेमने सर्व मुमुक्षुमंडळ तरफथी, आपणा बधा तरफथी, हृदयनां, वात्सल्यपूर्ण, भावभीनां
अभिनंदन छे. तेमन ब्रह्मचर्यजीवन दरम्यान सत्संगनुं माहात्म्य तेमना अंतरमां कदी मंद न हो
अने सत्संगसेवन दरम्यान चैतन्यतत्त्वनी प्राप्तिनुं ध्येय तेमना हृदयमां हंमेशा बनी रहो एम
आपणी सौनी अंतरनी शुभेच्छाओ छे.
ए ज एक चैतन्यपद छे के जे पद आस्वादयोग्य छे. अने ए पदना आस्वादननी धूननी
अंदर बीजा बधां सांसारिक झेरी आस्वाद–अमृत जेवा भले मनाता होय तोपण ए बधा झेरी
आस्वादोने–छोडवानी आपणने वृत्ति हो... अने ज्यांसुधी ए परमपदनो आस्वाद आपणने न
आवे त्यांसुधी ए आस्वाद लेनारा सत्पुरुषोनी निरंतर चरणरजनी आपणने आराधना हो–के
जे आराधनाना फळरूपे आपणे ए परमपदने पामीए, अने अनंतअनंत काळना भवसागरना
जे महादुःख तेने तरी जईए...
× × × ×
जराक आ पण वांचशो:–
* पृ. १३ हेडींगमां आराधना ने बदले आराधना छपाई गयुं छे.
* पृ. २३ (नं. ४२) मां समयसारनी पहेली गाथा छपायेल छे तेमां केटलीक अशुद्धि रही गई
छे ते समयसार प्रमाणे सुधारी लेवी.