भादरवो: २४८९ : १प :
(७)
उत्तम तपधर्मनी आराधना
शत्रुंजयगिरि उपर ध्यानरत पांडव भगवंतो
धगधगता अग्निनो उपद्रव थवा छतां पण पोताना
उत्तम ध्यानरूपी तपथी डग्या नहि. ए ज रीते
चैतन्यध्यानमां रत बाहुबलीभगवाने एक वर्ष
सुधी अडगपणे टाढ–तडका ने वरसादना उपसर्गो
सहन कर्या, चैतन्यना ध्यानद्वारा विषय–कषायोने
नष्ट कर्या ने चैतन्यना उग्र प्रतपनवडे केवळज्ञान
प्रगट कर्युं. घोर उपसर्ग थवा छतां पार्श्वनाथ
तीर्थंकर निजस्वरूपना ध्यानरूप तपथी डग्या नहि;
न तो तेमणे धरणेन्द्र उपर राग कर्यो के न तो कमठ
उपर द्वेष कर्यो. वीतराग थईने केवळज्ञान प्रगट
कर्युं. आवा स्वसन्मुख उपयोगना उग्र प्रतापवडे
कर्मोने भस्म करी नाखनारा उत्तम तपधर्मना
आराधक संतोने नमस्कार हो.
हे चैतन्यउपयोगी संतो! अमने उत्तम तपधर्मनी आराधना आपो.
(८)
उत्तम त्यागधर्मनी आराधना
हुं शुद्ध चैतन्यमय आत्मा छुं, देहादि कांई
पण मारुं नथी–एम सर्वत्र ममत्वना त्यागरूप
परिणाम वडे चैतन्यमां लीन थईने मुनिवरो उत्तम
त्यागधर्मने आराधे छे.
वळी श्रुतनुं व्याख्यान करवुं, साधर्मीओने
पुस्तक, स्थानके संयमना साधन वगेरे देवा ते पण
उत्तम त्यागनो प्रकार छे. कोई मुनिराज उत्तम
नवीन शास्त्र वांचता होय ने बीजा मुनिराजमां ते
शास्त्र वांचवानी उत्कंठा देखे तो तुरत ज बहुमान
पूर्वक ते शास्त्र तेमने अर्पण करे छे... ए पण उत्तम
त्यागनो एक प्रकार छे. सर्वत्र ममत्व त्यागीने, सर्व परभावना त्यागस्वरूप ज्ञानस्वभावनी
आराधनामां तत्पर उत्तम त्यागी मुनिवरोने नमस्कार हो.
हे निर्मम मुनिवरो! अमने उत्तम त्यागधर्मनी आराधना आपो.