: २२ : आत्मधर्म: २३९
चा... लो... शो... धी... ए...
अहीं जे सोनेरीसुवाक्यो आप्यां छे ते सोनगढना कोईने कोई पवित्र स्थानमां
लखेला छे... क्युं सुवाक्य क्या स्थळे लखेल छे... ते शोधी काढवानुं छे.
चालो शोधीए – (न मळे तो आगामी अंकमां शोधी लेशो.)
(१)... एकलुं निरपेक्ष तत्त्व ज लक्षमां लेवामां आवे तो स्वपर्याय प्रगटे छे
(२) जीव बंध बंने नियत निजनिज लक्षणे छेदाय छे, प्रज्ञाछीणी थकी छेदतां बंने जुदा पडी
जाय छे.
(३) हे भाई! तुं कोई पणरीते महाकष्टे अथवा मरीने पण तत्त्वोनो कौतुहली थई आ
शरीरादि मूर्तद्रव्योनो एक मूहूर्त (बे घडी) पाडोशी थई आत्मानो अनुभव कर...
(४) जिन समरो, जिन चिंतवो, जिन ध्यावो मन शुद्ध, ते ध्यातां क्षण एकमां लहो परमपदने शुद्ध.
(प) हे शिवपुरीना पथिक! ....... शिवपुरीनो पंथ जिनभगवंतोए प्रयत्नसाध्य कह्यो छे.
(६) निधि पामीने जन कोई निज वतने रही फळ भोगवे.
त्यम ज्ञानी परजन संग छोडी ज्ञाननिधिने भोगवे.
(७) “अहो! आ अपराजित तीर्थंकर अने हुं पूर्वभवे अपराजित–विमानमां साथे ज हता....”
(८) जैनधर्मने काळनी मर्यादामां केद करी शकाय नहीं.
(९) ते धन्याः सुकृतार्थः ते शूराः तेऽपि पंडिता मनुजाः।
सम्यक्त्वं सिद्धिकरं स्वप्नेऽपि न मलिनितं यैः।।
(१०)... कोई सत्उपदेश प्रसंगे थयेली परम आत्मिकभावनाने, कोई पुरुषार्थना धन्यप्रसंगे
जागेली पवित्र अंर्तभावनाने स्मरणमां राखजे, निरंतर स्मरणमां राखजे, भूलीश नहि.
(११) हवे पछीनी अनंत काळावली आत्मतत्त्वना भोगवटामां ज वहो.
(१२)... देवो उपकारवशताने लीधे मेघकुमारने विमानमां बेसाडी अढीद्वीपनी यात्रा करावे छे.
(१३)... यात्रा दरमियान क्यांक वनमां भक्तो साथे तीर्थना महिमा संबंधी चर्चावार्ता करे छे.
(१४) जे कोई सिद्ध थया छे ते भेदविज्ञानथी सिद्ध थया छे.
(१प)... उज्जवल आत्माओनो स्वत: वेग वैराग्यमां झंपलाववुं ए छे.
(१६) संयमसुधसागरने आत्मभावनाथी पूजुं.
(१७) ऋषभदेव अने श्रेयांसकुमारना जीवो... बे चारणमुनिओने आवता देखी आश्चर्य पामे
छे अने तेमना उपदेशथी सम्यग्दर्शन पामे छे... प्रीतिंकमुनिराज पूर्वभवना स्नेहने लीधे तेने सम्यक्त्व
पमाडवानी भावना थवाथी अहीं आवेल छे.
(१८) अर्हंत सौ कर्मोतणो करी नाश ए ज विधि वडे, उपदेश पण एम ज करी, निवृत्त थया,
नमुं तेमने.
(१९)... आ जगतप्रसिद्ध सत्यने हे भव्य! तुं जाण.
(२०) विदेहक्षेत्रमां देवो अने मनुष्य श्री सीमंधरभगवाननो तपकल्याणमहोत्सव ऊजवे छे...
त्यांथी फरतां फरतां नारद अयोध्या तरफ आवे छे... परम हर्षथी कहे छे: हे राजन्! विदेहक्षेत्रनी
पुंडरीकिणीनगरीमां में सीमंधरस्वामीने तपकल्याणकमहोत्सव प्रत्यक्ष देख्यो.