Atmadharma magazine - Ank 240a
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म: २४०A
तेने तो वृद्धावस्थामांय तेनी उग्रता थशे, पण पहेलां जेणे आत्मानी दरकार नहि करी होय ने देहमां
मूर्छाणो हशे ते वृद्धावस्था आवतां घेराई जशे. माटे आचार्यदेव अति करुणाथी कहे छे के हे भाई! तुं
पहेलेथी सावधान थईने आत्मानुं हित करी लेजे. वृद्धावस्था अने रोग आव्या पहेलां तारा
आत्महितनी संभाळ करजे. वृद्धावस्थामां आंखे देखाय नहि, श्रवण पण थाय नहि, हाथ–पग काम न
करे, अनेक रोग शरीरने घेरो घाले–ते पहेलां तारा चैतन्यना धर्मने साधी लेजे.
‘आत्मधर्म’ ना गतांकमां केटलाक प्रश्नो आपेला, अने तेना जवाबो ते ज अंकमां
अन्यत्र आपवाना हता, पण भूलथी ते जवाबो ते अंकमां छापवानुं रही थयुं छे, तेथी अहीं ते
जवाबो आप्या छे–
* भगवान ऋषभदेवना मुख्य गणधरनुं नाम ऋषभसेन; तेओ ऋषभदेवना ज पुत्र हता;
भरतना नाना भाई हता. धन्य ए पिता–पुत्र! तेमने नमस्कार.
* भगवान ऋषभदेवनी पुत्री, अने भरतचक्रीनी छोटी बहेन ब्राह्मी आद्यगुरु आदिनाथनी
कृपाथी दीक्षित थईने आर्याओनी वच्चे गणिनी पदने पाम्या. ते ब्राह्मी पूजित थई; वृषभदेवनी
बीजी पुत्री सुन्दरीदेवीयने पण ते समये वैराग्य थतां तेणे पण ब्राह्मीनी पाछळ दीक्षा लीधी
हती. आ उपरांत अनेक राजाओए तेमज राजकन्याओए पण ते समये दीक्षा लीधी हती. तेमने
नमस्कार.
* श्रुतकीर्ति नामना कोई अतिशय बुद्धिमान पुरुषे भगवान ऋषभदेवना चरणसमीपे श्रावकनां
व्रतो ग्रहण कर्या हता. अने देशव्रती गृहस्थोमां ते श्रेष्ठ हता. तेमने नमस्कार.
* धीर, वीर अने पवित्र अंतःकरणवाळी प्रियव्रता नामनी सती स्त्री, श्रावकनां व्रत धारण
करनारी स्त्रीओमां सौथी श्रेष्ठ हती. तेमने नमस्कार.
भगवान आदिनाथने ज्यारे केवळज्ञान थयुं त्यारे अनेक राजाओ दीक्षित थईने मोटी
मोटी ऋद्धिना धारक मुनिराज थया. भरतना भाई अनंतवीर्य पण दिव्यध्वनि सांभळीने दीक्षित
थया, देवोए तेमनी पूजा करी. अने आ अवसर्पिणी युगमां मोक्ष प्राप्त करवामां सौथी अग्रेसर
थया. तेमने नमस्कार.
* भगवान महावीरना समवसरणमां मुख्य गणधर ईन्द्रभूति–गौतम; मुख्य अर्जिका
चंदनबाळा; मुख्य श्रावक सांखसतक शेठ; मुख्य श्राविका सुलसा अने रेवतीराणी;: तेमने
नमस्कार हो.
* अपराजितविमानमां बे जीवो साथे हता; त्यांथी नीकळीने एक तो विदेहक्षेत्रमां अपराजित
नामना तीर्थंकर थया, अने बीजा भरतक्षेत्रमां नमिनाथ तीर्थंकर थाय. अपराजित–तीर्थंकरने
केवळज्ञान थयुं त्यारे देवो पूजा करवा आव्या ने धर्मसभामां कोईए पूछयुं के आ भगवाने उत्तर
आप्यो के हा; अत्यारे भरतक्षेत्रना बंगदेशनी मिथिलानगरीमां नमिनाथस्वामी अपराजित
विमानथी अवतर्या छे, अने तेओ भरतक्षेत्रना २१मा तीर्थंकर थनार छे. ए रीते विदेहक्षेत्रना
अपराजित तीर्थंकरना समवसरणमां भरतक्षेत्रना नमिनाथ तीर्थंकरनी वात आवी. पछी ज्यारे
देवोद्वारा नमिनाथ कुमारे ए वात सांभळी त्यारे तेओ संसारथी विरक्त थया... (सोनगढ–
जिनमंदिरमां आ प्रसंगनुं भावभीनुं द्रश्य छे; पूरी कथा माटे जुओ आत्मधर्म अंक १८१)