Atmadharma magazine - Ank 240a
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आसो: २४८९ : १३ :
मोक्षार्थी श्रावकोनुं
प्रथम कर्तव्य
निष्कंय सम्यक्त्वनुं ग्रहण अने तेनुं ध्यान
आचार्यदेव कहे छे के ते श्रावक पण धन्य छे के जेने निर्मळ
सम्यक्त्वनी आराधना प्रगट करी छे

दुःखना क्षयने अर्थे श्रावकोए शुं करवुं ते कहे छे:–
हिगऊण य सम्मत्तं सुणिम्मलं सुरगिरिव णिक्कं पं।
तं झाणे झाइज्जइ सावय! दुक्खक्खयठ्ठाए।।८६।।
श्रावकोए प्रथम तो सुनिर्मल सम्यक्त्व प्रगट करवुं, अत्यंत निर्मळ अने मेरुसमान निष्कंप
एवुं सम्यग्दर्शन प्रगट करीने तेनुं ध्यान करवुं. चल–मलिन अने अगाढ दोषोरहित एवुं अचल–
निर्मळ–द्रढ सम्यग्दर्शन प्रगट करीने दुःखना क्षय माटे तेने ज ध्यानमां ध्याववुं. जेम महा संवर्तक
वायराथी पण मेरुपर्वत डगतो नथी तेम जगतनी गमे तेवी प्रतिकूळताथी पण सम्यग्द्रष्टिनुं श्रद्धान
डगे नहि, देव परीक्षा करवा आवे तोपण सम्यक्त्वथी डगे नहि–आवुं द्रढ सम्यक्त्व श्रावके ग्रहण करवुं.
निर्विकईप आनंदना वेदनसहितनुं आवुं द्रढ सम्यक्त्व गृहस्थपणामां पण होय छे, अने श्रावकोए
सौथी पहेलां आवुं सम्यक्त्व प्रगट करवुं–एवो उपदेश छे. दुःखनो क्षय आवा सम्यग्दर्शनथी ज थाय
छे, माटे दुःखनो क्षय करवा आवा निर्मल सम्यक्त्वने अचलपणे–द्रढपणे निरंतर ध्यावो. सम्यक्त्वनुं
ध्यान करवानुं कह्युं तेमां अभेदपणे सम्यक्त्वना विषयभूत शुद्ध आत्मा ध्येयपणे आवी जाय छे.
गृहवाससंबंधी जे क्षोभ–कलेश–दुःख होय ते सम्यक्त्वनी भावनाथी मटी जाय छे. सम्यग्दर्शनमां जेवुं
वस्तुस्वरूप प्रतीतमां आव्युं छे तेनुं चितंन करावाथी सर्व दुःखनो क्षय थई जाय छे. जुओ, आ
दुःखना नाशनो उपाय! अने श्रावक–गृहस्थोनुं पहेलुं कर्तव्य! आवा सम्यक्त्व वगर धर्म थाय नहि ने
दुःख मटे नहि. जेने सम्यक्त्व थयुं होय एवा धर्मात्मा श्रावक वारंवार शुदधात्मानी भावनारूपे
सम्यक्त्वनुं ध्यान करे छे, तेथी तेमने निर्मळता वधती जाय छे; गमे तेवा प्रसंग के उपद्रव आवी पड्या
होय पण सम्यक्त्वनी भावनाथी शुद्धात्मा उपर ज्यां नजर करे त्यां धर्मात्मा आखा संसारने भूली
जाय छे. अने जेने सम्यक्त्व हजी न प्रगट्युं होय एवा श्रावकोए–गृहस्थाए पण सम्यक्त्वनुं
वास्तविक स्वरूप समजीने तेनुं वारंवार चिंतन अने भावना करवाथी सम्यक्त्व थाय छे.
सम्यद्रष्टिए सर्वज्ञअनुसार यथार्थ वस्तुस्वरूप जाण्युं छे तेनी ते निरंतर भावना करे छे.
बहारनुं कार्य सुधरे के बगडे पण तेओ पोताना सम्यक्त्वथी डगता नथी; सम्यक्त्वनी निष्कंपता वडे,
निःशंकपणे यथार्थ वस्तुस्वरूप चिंतवे छे के सर्वज्ञदेवे वस्तुनुं स्वरूप जे रीते जाण्युं छे ते ज रीते तेनुं
परिणमन थाय छे, कोई तेने फेरववा