Atmadharma magazine - Ank 240a
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म: रजीस्टर नं. जी. ८२
आनंदजननी
वैराग्यभावना
अहो, अडोल दिगंब२वृत्तिने धारण करनारा, वनमां वसनारा अने चिदानंदस्वरूप
आत्ममां डोलनारां मुनिवरो–जेओ छठ्ठे–सातमे गुणस्थाने आत्माना अमृतकुंडमां झूले छे,
तेमनो अवतार सफळ छे... एवा संत मुनिवरो पण वैराग्यनी बार भावनाओ भावना
जेवी छे. आ भावनाओने आनंदनी जननी कीधी छे; केमके वस्तुस्वरूप अनुसार वैराग्यनी
भावनाओनुं चिंतवन करतां चितनी स्थिरता थईने भव्य जीवने आनंद थाय छे अने ते
सांभळतां ज भव्यजीवोने मोक्षमार्गमां उत्साह ऊपजे छे. अहा, तीर्थंकरो पण दीक्ष वखते
जेनुं चिंतन करे एवी वैराग्यरसमां झूलती आ बार भावनाओ भावता क्या भव्य
मोक्षमार्गनो उत्साह न जागे? ?
आत्मा ज्ञानानंदस्वरूपे नित्य छे तेनुं जेने भान अने भावना नथी, ने देहना
संयोगनां ज आत्मबुद्धि करीने वर्ते छे एवो अज्ञानी जीव, बंदूकनी गोळी आवे त्यां “हाय!
हाय! हमणां मारो नाश थई जशे”– एवा अज्ञानथी तीव्र भय पामीने महा दुःखी थाय छे.
त्यारे, नित्य ज्ञानानंदस्वरूपनी भावना१क्ष् भावनार ज्ञानी तो निर्भय छे के मारा
ज्ञानानंदस्वरूपने विंधवानी के नष्ट करवानी ताकात, बंदूकनी गोळीमां के जगतमां कोई
पदार्थमां नथी. –आ रीते ज्ञानानंदस्वरूपनी भावनापूर्वक ज्ञानीने समाधान वर्ते छे. कदाचित्
भयने लीधे रागद्वेष थई आवे तोपण ज्ञानानंदस्वरूपनी भावना खसीने तो रागद्वेष तेने
थता ज नथी, तेथी तेना रागद्वेषनुं प्रमाण घणुं ज अल्प होय छे. अने अज्ञानी कदाचित् राष्ट्र
वगेरेना अभिमानने लीधे हिंमतपूर्वक सामी छातीए बंदूकनी गोळी झीलतो होय तोपण,
नित्य ज्ञानानंदस्वरूपनी भावना नहि होवाथी ने देहादि परद्रव्योमां आत्मबुद्धि होवाथी तेना
अभिप्रायमां रागद्वेषनुं प्रमाण घणुं ज तीव्र (अनंतानुबंधी) छे.
अहा, भावनानुं वलण कई तरफ झूके छे तेना उपर आधार छे. ज्ञानीनी भावनानुं
वलण आत्मस्वभाव तरफ झूके छे, ते भावना आनंदनी जननी छे ने भवनी नाशक छे.
अनित्य, अशरण वगेरे बारे प्रकारनी वैराग्यभावनाओनो झूकाव तो नित्य–शरणभूत
चिदानंद स्वभाव तरफ ज होय छे. देहादि संयोगोने अनित्य जाणीने तेनाथी विरक्त थईने
नित्य ज्ञानानंदस्वभावमां वळवुं–ते ज खरुं अनित्यभावनानुं तात्पर्य छे. अने आ रीते
स्वभाव तरफना झुकावपूर्वक वैराग्यभावनाओना चिंतनथी धर्मात्माने आनंद वधतो जाय
छे, तेथी बार वैराग्यभावनाओ आनंदनी जनेता छे, आनंदने जन्म देनारी मात छे. माटे
आनंदना अभिलाषी जीवोए वस्तुस्वरूपना लक्षपूर्वक ए भावनाओ भाववा जेवी छे.
(–द्वादशानुप्रेक्षाना प्रवचनोमांथी)
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श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रिन्टिंग प्रेस –भावनगर