आसो: २४८९ : १९ :
ज नथी. जो केवळज्ञाननुं स्वरूप ओळखे तो अज्ञानमां ने अल्पज्ञतामां पोताने केवळज्ञान माने नहीं.
जीवने केवळज्ञान प्रगट तो नथी. छतां ते केवळज्ञानने आवरण करनारुं कर्म
(केवळज्ञानावरणीकर्म) केम कह्युं? जे वस्तुहोय तेना माथे आवरण कहेवाय, पण जे वस्तु न
चैतन्यशक्तिमां केवळज्ञान प्रगट थवानी ताकात छे. ते केवळज्ञानने प्रगट थवा न दे ते
अपेक्षाए तेने केवळज्ञानावरणकर्म कहयुं छे. आम छतां जे त्रिकाळी शक्ति छे ते शक्ति उपर कांई
आवरण नथी, तेम ज जे ज्ञान प्रगट छे तेना उपर पण आवरण नथी; पण जे शक्ति छे ते शक्तिनुं
व्यक्तपरिणमन न थवा द्ये तेने आवरण कहेवाय छे. ज्ञानगुणमां केवळज्ञान थवानी ताकात होवा छतां
ते केवळज्ञान प्रगटतुं नथी. तेमां निमित्तरूप कर्मने केवळज्ञानावरण कर्म कह्युं. शक्तिने आवरण शुं?
अने जे व्यक्त छे तेने पण आवरण शुं? शक्तिमां पूर्ण होवा छतां पर्यायमां जेटलुं व्यक्त नथी तेटलुं
आवरण छे. पर्यायमां ओछुं व्यक्त होय तेथी कांई शक्तिमां ओछुं थई जतुं नथी. धर्मीने पर्यायमां
ओछुं ज्ञान व्यक्त होय तो पण पूर्ण ज्ञानस्वभावनी प्रतीत तेने वर्ते छे. ने ते स्वभावना अवलंबने
पूर्णता तरफनो पुरुषार्थ पण वर्ते छे. अने अज्ञानी तो, पर्यायमां केवळज्ञान व्यक्त छे. पण कर्मे तेने
आवर्युं छे. एम मानीने पुरुषार्थ हीनपणे स्वच्छंदे प्रवर्ते छे. एवा निश्चयाभासीने मिथ्याद्रष्टि ज
जाणवा.
अमे पण परमात्मा छीए, केमके बधा आत्मा
परमात्मा छे–एम कोई कहे तो शुं वांधो!
आत्मा शक्तिरूपे परमात्मा छे–ए वात साची, पण जेने एवी परमात्मशक्तिनुं भान थयुं होय
तेने पोतानी पर्यायनो केटलो विवेक होय? हजी पर्यायमां राग–द्वेष थता होय छतां पर्यायथी पोताने
परमात्मा मानीने प्रवर्ते तो तेमां परमात्मानी असातना थाय छे, परमात्मशक्तिने पण तेणे खरेखर
जाणी नथी. परमात्मशक्तिने जे जाणे ते आम स्वच्छंदे प्रवर्ते नहि, अने जेने परमात्मशक्ति प्रगटी
होय ते कांई बीजाना मोढे एम कहेवा न जाय के हुं परमात्मा छुं,
रागद्वेष होवा छतां अमे तो आत्माने शुद्ध ज
अरे भाई, आ रागद्वेष थाय छे ते कोना अस्तित्वमां थाय छे? तारा पोताना अस्तित्वमां ज
थाय छे के कोई बीजा द्रव्यमां थाय छे? ते रागादिभावो कांई शरीरमां नथी थता, कर्म पण अचेतन छे
तेमां कांई ए भावो थतां नथी; ते रागादिभावो तो चैतन्यना जोडाणपूर्वक जीवनी अवस्थामां ज थाय
छे; ने ते कार्य जीवनुं ज छे. माटे पोतानी पर्यायमां रागद्वेष थता होवा छतां एम मानवुं के रागद्वेष
थतां ज नथी–ए तो भ्रम छे. ज्ञानी चिदानंदस्वभावमां लीन थाय तेटले अंशे तेने रागादि थता ज
नथी, अने तेटले अंशे ते पोतानी शुद्धताने अनुभवे छे. अने पर्यायमां जेटला रागादि थाय छे तेटली
अशुद्धता पण छे–एम ते जाणे छे.