Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४९०ः १पः
आचार्यदेवे आ बोलमां ए सिद्धांत समजाव्यो के स्वने जाण्या वगर परने जाणी
शकाय नहीं. पंचपरमेष्ठी के सम्यग्द्रष्टि वगेरेना आत्मानो स्वभाव एवो नथी के एकला
अनुमानथी के रागथी ते जणाय. अरिहंतने के सिद्ध वगेरेने साचा भावनमस्कार कयारे
थाय? के तेमने ओळखे त्यारे; तेमनी साची ओळखाण कयारे थाय? के स्वसंवेदनथी
पोताने ओळखे त्यारे.
वळी आत्मा एकला अनुमानथी जाणनारो नथी. साधकने अनुमान होय खरुं,
पण साथे स्वसंवेदन–प्रत्यक्षनो अंश पण वर्ते छे, एटले एकलुं अनुमान नथी. साधकने
अंशे प्रत्यक्ष ने अंशे परोक्ष बंने साथे छे, स्वाश्रये प्रत्यक्षपणुं वधतुं जाय छे, ने
परोक्षपणुं तूटतुं जाय छे. साधक जाणे छे के जेटलुं परोक्षपणे काम करे ते मारुं वास्तविक
स्वरूप नहि, आत्माने अवलंबीने ज्ञानमां जेटलुं प्रत्यक्षपणुं (अतीन्द्रियपणुं) थाय ते
ज मारुं स्वरूप छे.
एकलुं अनुमान जेनो स्वभाव नथी पण प्रत्यक्षज्ञान जेनो स्वभाव छे–एवा
आत्माने हे शिष्य! तुं जाण. आत्मा तो प्रत्यक्षज्ञाता छे. अरे, परोक्षज्ञान पण एनो
स्वभाव नथी तो पछी राग के इन्द्रियोनी वात तो क्यां रही? कोई पराश्रय वडे नहि,
परंतु स्वभाव वडे ज जाणनारो आत्मा छे. अहा, आवा आत्माने लक्षमां ल्ये त्यां
पराश्रयबुद्धि क्यां रही?
सीमंधरनाथ सर्वज्ञपरमात्मानो साक्षात् सन्देशो लावीने कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के
हुं तो भगवान पासेथी आवो सन्देशो लाव्यो छुं....जेने सुखशांति जोईती होय तेओ
आ सन्देश झीलीने ज्ञानानंदस्वरूप आत्मामां उपयोगने वाळो.
“अलिंगग्रहण”नी आ गाथा समयसारमां छे, नियमसारमां छे,
पंचास्तिकायमां छे, अष्टप्राभृतमां छे, ने धवलामां पण छे. आ गाथा घणी महत्वनी
छे. (चालु)
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