Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 42

background image
वर्षः २१वीर सं.
अंकः १र४९०
२४१
तंत्री
जगजीवन बावचंद दोशी
कारतक
वीतरागी हितोपदेशनां अमीझरणां
भाई जगतना कोई पदार्थो कहेता नथी के तुं अमारी सामे जो! जगतना कोई
पदार्थो एम नथी कहेता के तुं अमने अनुकूळ समजीने अमारा उपर राग कर! तेम ज
कोई पदार्थो एम नथी कहेता के तुं अमने प्रतिकूळ समजीने अमारा उपर द्वेष कर!
जगतना पदार्थो तो तेना स्वरूपमां परिणम्या करे छे....ते आ जीवनुं नथी तो कांई इष्ट
करता, के नथी कांई बगाडता. भाई! आम जाणीने तुं शिवबुद्धिने पाम...तुं तारा
ज्ञायकभावपणे रहे! परवस्तु तने इष्ट के अनिष्ट नथी....माटे तेमां रागद्वेषनी बुद्धि
छोड....ने ज्ञानने आत्मामां जोड!
भाई! जगत जगतमां...ने तुं तारामां, तारे ने जगतने शुं लेवा देवा!! जगतना
ज्ञेयो तो तारा ज्ञानथी बहार ज रहे छे. ज्ञेयो कांई तारा ज्ञानमां आवीने एम नथी कहेता
के तुं अमारा उपर रागद्वेष कर! माटे तुं पण तारा ज्ञानभावथी ज रहे....पोते पोताना
ज्ञानभावमां रहेवुं तेमां वीतरागी–शांति छे; एनुं नाम शिवबुद्धि छे, ते ज कल्याणकारी
बुद्धि छे, रागद्वेष वगरनुं ज्ञान छे ते अतीन्द्रियआनंदथी भरेलुं छे.
अहा, संतोनो केवो वीतरागी–हितोपदेश छे!! अंतरमां वीतरागी चैतन्यनुं घोलन
करतां करतां, भव्यजीवोना महाभाग्ये आवा वीतरागी उपदेशनां अमीझरणां संतोए
वहेवडाव्या छे.....जराक लक्षमां ल्ये तो केटली शांति!! केटलुं समाधान!! (चर्चामांथी)
[२४१]