कोई पदार्थो एम नथी कहेता के तुं अमने प्रतिकूळ समजीने अमारा उपर द्वेष कर!
जगतना पदार्थो तो तेना स्वरूपमां परिणम्या करे छे....ते आ जीवनुं नथी तो कांई इष्ट
करता, के नथी कांई बगाडता. भाई! आम जाणीने तुं शिवबुद्धिने पाम...तुं तारा
ज्ञायकभावपणे रहे! परवस्तु तने इष्ट के अनिष्ट नथी....माटे तेमां रागद्वेषनी बुद्धि
छोड....ने ज्ञानने आत्मामां जोड!
के तुं अमारा उपर रागद्वेष कर! माटे तुं पण तारा ज्ञानभावथी ज रहे....पोते पोताना
ज्ञानभावमां रहेवुं तेमां वीतरागी–शांति छे; एनुं नाम शिवबुद्धि छे, ते ज कल्याणकारी
बुद्धि छे, रागद्वेष वगरनुं ज्ञान छे ते अतीन्द्रियआनंदथी भरेलुं छे.
वहेवडाव्या छे.....जराक लक्षमां ल्ये तो केटली शांति!! केटलुं समाधान!! (चर्चामांथी)