Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः २४ः आत्मधर्मः २४१
अहा, जुओ तो खरा...केवा शांतभावो आचार्यदेवे भर्या छे! अमृतना सागर
केम ऊछळे–ते वात अमृतचंद्राचार्यदेवे आ समयसारमां समजावी छे. साधकनी अंदरनी
शुं स्थिति छे तेनी जगतना जीवोने खबर नथी; तेना हृदयना गंभीर भावो
ओळखवानुं साधारण जीवोने मुश्केल पडे तेवुं छे. समजवा मागे तो बधुं सुगम छे. आ
भावो समजे तो अमृतना सागर ऊछळे ने झेरनो स्वाद छूटी जाय. भेदज्ञाननो आ
महिमा छे. भेदज्ञान थतां ज जीवनी आवी दशा थाय छे. ज्ञानी धर्मात्मा चैतन्यरसना
स्वाद पासे जगतना बधा स्वाद प्रत्ये सदाय उदासीन अवस्थावाळो थयो छे. रागादिने
पण अत्यंत उदासीन अवस्थावाळो रहीने मात्र जाणे ज छे; पण तेनो कर्ता थतो नथी.
आ रीते ज्ञायकस्वभावने ज स्वपणे अनुभवतो ज्ञानी निर्विकल्प अकृत्रिम एक
विज्ञानघनपणे परिणमतो थको अन्यभावोनो अत्यंत अकर्ता ज छे. आवी अद्भुत
दशाथी साधक ओळखाय छे.
(स. गा. ९७ ना प्रवचनमांथी)
प्रसिद्ध थई चूकयुं छेः मंगल तीर्थयात्रा
जिज्ञासुओ जेनी राह जोता हता ते पुस्तक “मंगल
तीर्थयात्रा” गत आसो वद अमासना रोज प्रसिद्ध थई गयुं छे.
१प० जेटलां आर्टपेपरना पेईज सहित कूल ६०० उपरांत पानां
अने ३प० उपरांत तीर्थयात्रानां विविध प्रकारना भक्तिप्रेरक
चित्रो–जोतां ज तीर्थोनां पवित्र स्मरणो ताजा थाय छे. (लेखक
ब्र. हरिलाल जैन) सुंदर चौरंगी जेकेट; जेनुं चित्र आ अंकनी
साथे मोकलवामां आव्युं छे. आ जेकेट मुंबइना जेचंद तलकशी
एन्ड सन्स तरफथी भेट आपवामां आव्युं छे. (किंमत
रूा. आठ)
सुचनाः–
[आ चौरंगी जेकेटनी फक्त बे हजार नकलो छे एटले
बे हजार सुधीना ग्राहकोने ज ते मळी शकशे. V. P. ना अंकोनी
साथे आ चित्र नहि मोकलाय.]
प्राप्तिस्थानः जैन स्वाध्याय मंदिर, सोनगढ