Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४९०ः २९ः
वगेरे चतुष्टयथी झळहळतुं सुप्रभात उदय पामे छे. विकार तो अंधकार छे ने चैतन्य तो
प्रकाश छे. आ रीते राग अने ज्ञानना भेदज्ञानवडे आत्मस्वभावनी द्रष्टि करतां
अतीन्द्रिय आनंदमय अमृतना स्वादसहित सम्यग्दर्शनरूपी सुप्रभात ऊगे छे. जेने
आवुं सुप्रभात ऊग्युं तेने आत्मामांथी अनादिना अंधारा टळ्‌या ने अपूर्व प्रकाश
खील्यो. ते आत्मा पोते तो स्वयं आनंदरूप छे ने बीजा (तेने सेवनारा) जीवोने
माटे पण ते आनंदनुं कारण छे.
आवुं सुप्रभात केम खीले? चिदानंदस्वभावनो आश्रय ने विभावनो आश्रय
नहि–ए रीते चैतन्यभूमिकाना आश्रये चैतन्यकळी खीलीने अनंत पांखडीथी शोभतुं
केवळज्ञानरूपी कमळ खीली जाय छे. सम्यग्दर्शनरूपी प्रभात पण चिदानंदस्वभावना
आश्रयथी थाय छे ने केवळज्ञानरूपी प्रभात पण तेना ज आश्रयथी थाय छे. आ
सम्यग्दर्शन तेम ज केवळज्ञान ए बन्ने आनंदमय सुप्रभात छे, बन्नेनो शुद्धप्रकाश
अतिशय छे. अहो, ज्यां सम्यग्दर्शन अने केवळज्ञानरूपी दीवडा प्रगटया त्यां
आत्मामां दीवाळी (–दीपावली, एटले के सम्यग्दर्शन आदि निर्मळ पर्यायरूप
दीपकोनी हारमाळा) प्रगटी, ने सादि अनंत मंगळरूप नवुं अपूर्ववर्ष बेठुं. जेने
चैतन्यस्वरूप आत्मानी अनुभूति प्रगटी ते जीव मोक्षनी नजीक आव्यो ने तेने खरुं
सुप्रभात ऊग्युं.
वळी चैतन्यतत्त्व अनंत आनंदरसथी–चैतन्यरसथी भरेलुं छे, तेना आश्रये जे
सुप्रभात खील्युं ते आनंदमां सुस्थित छे, भगवान आत्मा आनंदना अनुभवमां स्थिर
थयो छे. आनंदनो स्वाद लेवामां लयलीन थईने ठर्यो छे. जे आवी दशा प्रगटी ते
सदाय अस्खलित छे, तेमां कर्म वगेरेनी कोई बाधा नथी, तेमां फरीने स्खलना नथी,
विघ्न नथी, भंग नथी. चैतन्यना आश्रये प्रगटेलुं ते सुप्रभात चैतन्यनी साथे ज सदाय
अस्खलितपणे टकी रहेशे. तेना प्रकाशने कोई रोकी शके नहि; तेमां विकारनुं कोई कलंक
नथी ने कर्मनुं कोई आवरण नथी; एकला शुद्ध आनंदथी ते भरपूर छे. आत्मामां ज्यां
आवुं अपूर्व वर्ष बेठुं, अपूर्व पर्याय खीली, त्यां ते आनंदना अनुभवरूपी लापशीनां
भोजन करे छे. ल्यो, आ नवा वरसनी लापसी पीरसाय छे. सुप्रभात एटले
सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञान सुधीनी पर्यायरूपी सुप्रभात छे ते अतीन्द्रिय आनंदना
अनुभवथी भरेलुं छे. सम्यग्दर्शन पण अतीन्द्रिय आनंदथी भरेलुं छे ने केवळज्ञान
पूर्ण आनंदथी भरपूर छे. अहा, असंख्यप्रदेशे आनंदमय चैतन्यदीवडाथी भगवान
आत्मा झळहळी ऊठयो–शोभी ऊठयो ते मंगल प्रभात छे. तेनो प्रकाश हवे कोईथी डगे
नहि, तेथी तेनी ज्योत