Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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३०ः आत्मधर्मः २४१
अचल छे. केवळज्ञाननी के सम्यग्दर्शननी ज्योति अचल छे. आ रीते चैतन्यमां स्थिर
थईने स्ववीर्यथी केवळज्ञानादि अनंतचतुष्टयनी रचना करीने भगवान आत्मा सादि
अनंत सुप्रभातपणे शोभे छे. ते अपूर्व मांगळिक छे.
अनेकान्तद्रष्टि वडे चिदानंदस्वभावनो जेणे निर्णय कर्यो तेने स्वसन्मुखतामां
चैतन्यना ज्ञानानंदथी विलसतुं, शुद्ध प्रकाशथी शोभतुं, आनंदमय सुप्रभात खीले छे.
अहा, ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखीने तेमां जेणे प्रवृत्ति करी अने परभावोथी निवृत्ति
करी–ए रीते चैतन्यभूमिकानो आश्रय कर्यो तेने सम्यक् श्रद्धा ज्ञान आनंद अने वीर्यथी
झळहळतुं मंगल–प्रभात ऊग्युं....आत्मामां आ प्रभात ऊग्युं ते ऊग्युं. हवे फरीने कदी
ते आथमशे नहि; तेना विकासने कोई रोकी शके नहीं.
अहा, आवुं सुप्रभात खीलवनारा संतो, जंगलमां बेठाबेठा केवळज्ञान–
खजानाने शोधवामां मस्त, अंदरमां ऊंडा ऊंडा ऊतरीने आनंदना दरियामां मग्न
होय.... तेने जोतां चक्रवर्ती जेवाने पण एम थाय के वाह! प्रभो, आप चैतन्यने साधी
रह्या छो...हमणां आपनो आत्मा अनंत चतुष्टयरूप साध्यने प्रगटावी सुप्रभातपणे
झळहळी ऊठशे.–एम कहीने एनां चरणोमां चक्रवर्ती पण शीर झूकावे छे.
चैतन्यस्वभावनी अंतर्मुख थइने जे श्रद्धा करशे तेने अल्पकाळमां
केवळज्ञानप्रकाशथी झळकतुं सुप्रभात पूर्णपणे खीली जशे एवा संतोना आशीर्वाद छे.
आ रीते बेसता वर्षनुं मांगलिक कर्युं.
(समयसार कळश २६८ना प्रवचनमांथी)
* जिनेन्द्रदेवनो जन्म जगतने माटे आनंदकारी छे.
* बधा पदार्थो करतां आत्मा ज उत्तम अर्थ छे.
* बधां कार्यो करतां आत्मानी आराधना ए ज उत्तम कार्य छे.
* * *
* धर्म आनंदरूप छे ने धर्मपरिणत धर्मात्मानो स्वभाव पण जगतने
आनंद देवानो छे.