जुओ अहींथी उपर अनंत सिद्धभगवंतो बिराजे छे. आत्मानो ज्ञान–आनंद
स्वभाव जे भावथी प्रगटयो ते सम्यग्दर्शनादि भाव पण मंगळ छे. ‘धवला’
टीकामां श्री वीरसेनाचार्य कहे छे के भविष्यमां मोक्ष पामनार आत्मद्रव्य पण त्रिकाळ
मंगळ छे, अल्पकाळमां थनार केवळज्ञानादि मंगळपर्याय साथे ते संकळायेलुं छे; अने
जे काळे आत्मा मुक्ति पाम्यो के मुक्तिनो मार्ग पाम्यो ते काळ पण मंगळ छे. जेणे
आत्माना ज्ञानानंदस्वभावनी प्रतीत करीने पोताना आत्मामां सम्यग्दर्शन–ज्ञानरूप
मंगळ प्रगट कर्युं ते जीव भगवानने पण पोताना मंगळनुं कारण कहे छे, ने
भगवान ज्यांथी मोक्ष पधार्या एवा आ सम्मेदशिखरजी वगेरे तीर्थधामने पण ते
मंगळ कहे छे. आवी निर्वाणभूमि जोतां तेने मोक्षतत्त्वनुं स्मरण थाय छे; एटले
मोक्षतत्त्वनी प्रतीतमां अने स्मरणमां आ भूमि निमित्त छे तेथी आ भूमि पण
मंगळरूप तीर्थ छे. तेनी यात्रा माटे अहीं आव्या छीए. आ रीते द्रव्य क्षेत्र काळ ने
भाव सर्व प्रकारे मांगळिक कर्युं.”
प्रफुल्लतामय लागतुं हतुं; इष्टधाममां आव्यानो सौने संतोष हतो. धर्मपिताना धाममां
धर्मात्माओने आनंदथी विचरता देखीने जिज्ञासु भक्तोनां हृदय उल्लसता हता. अहीं
यात्रा संघमां १प०० जेटला यात्रिको थइ गया हता, ने बीजा यात्रिको पण बे हजार
जेटला हता. गुरुदेव साथे आ शाश्वत सिद्धिधामने भेटवा सौनां हृदय आतुर थइ रह्या
हतां. क्यारे सिद्धिधामने भेटीए! ने क्यारे गुरुदेव साथे यात्रा करीने सिद्धिधामना
वैभवने देखीए! एम सौ भावना भावी रह्या हता. सिद्धक्षेत्रमां डगले ने पगले
सिद्धोनुं ने साधक संतोनुं स्मरण थतुं हतुं. सिद्धनुं स्मरण संसारने भूलावी दे छे, तेम
सिद्धिधाममां पहोंचेला यात्रिको संसारना वातावरणने भूली गया हता. जेम सिद्धपद
पाम्या पहेलां पण साधकने तेनो आनंद होय छे तेम सिद्धिधामनी यात्रा कर्या पहेलां
पण तेनी छायामां यात्रिकोने यात्रा जेवो आनंद थतो हतो. खरेखर तो यात्रानी
शरूआत पर्वत उपर चडीए त्यारे