Atmadharma magazine - Ank 242-243
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः १०ः आत्मधर्मः २४२–२४३
पाडीने बोलावे के हे भाई! ए मार्ग खोटो छे, तमे आ तरफ आवो....तमारो मार्ग आ
छे–आ छे. तेम राग साथे एकत्वबुद्धिथी मोक्षनो मार्ग भूलेला जीवोने आचार्यदेव
फरीफरीने करुणापूर्वक संबोधन करीने जगाडे छे के अरे जीवो! रागथी पाछा वळो–पाछा
वळो....ए तमारो मार्ग नथी, ए तमारुं पद नथी....माटे आ तरफ आवो....आ तरफ
आवो....आ शुद्ध चैतन्यमय पद छे ते ज तमारुं पद छे. अहा, संतो आवुं
अचिंत्यमहिमावंत निजपद देखाडे छे. निजपदने नहि देखनारा जीवोने अंध कहीने
आचार्यदेव ते अंधपणुं छोडावे छे....ने निजपद देखाडीने साची द्रष्टि आपे छे.
भाई, विकल्पवडे तारा सम्यग्दर्शनादिनी पर्याय रचाती नथी, विकल्पवडे
चैतन्यनी शांतिनुं वेदन थतुं नथी, विकल्पवडे निजपदने देखी शकातुं नथी. माटे
विकल्पथी उपयोगने भिन्न करीने नजरने अंतरमां वाळो....ने विकल्पथी भिन्न
निजपदने देखो. आ निजपद चैतन्यमय छे, ने निजरसथी अतिशय भरेलुं छे. अरे
भगवान! तारा निजपदने तुं भूल्यो....ने अंध थइने रागमां सूतो. हवे समयसारवडे
तने राग अने चैतन्यनी अत्यंत भिन्नता अमे बतावी; माटे हवे तो आवुं भेदज्ञान
करीने तुं जाग! अंतर्मुख थइने तारा निजपदने हवे तो देख.
अहा, शुद्ध चैतन्यनुं बनेलुं आ निजपद शुद्ध छे–अत्यंत शुद्ध छे; परद्रव्यो ने
परभावोथी ते रहित छे, अने निजरसथी ते भरेलुं छे. आवा शुद्ध–शुद्ध निजपदने हे
जीवो! तमे अनुभवो.
अनादिथी अज्ञानभावे रागमां ज निश्चिंतपणे सूता छो, एटलो विचार पण
नथी आवतो के अरे, आ राग तो मारुं पद केम होय? रागनी रुचि आडे आंधळा
थइने निजपदने भूली गया छे. आवा अज्ञानीओने आचार्यदेव जगाडे छे.
जागो....भाई.....जागो! भेदज्ञान करीने निजपदने संभाळो! सावधान थइने राग अने
ज्ञानने जुदा ओळखो.
चैतन्यने भूलीने परभावनी चादर ओढीने मोहनिद्रामां सूतो छे ने विषयोमां
सुखबुद्धिरूप स्वप्नामां राचे छे; जेम स्वप्नमां बंगला वगेरे देखे पण ते कांइ साचा नथी,
तेम बाह्यविषयोमां जीव सुख माने छे ते पण स्वप्नसमान ज छे. रागादि भावोमां तारा
चैतन्यनो अंश पण नथी. अरे जीव! हवे तुं जाग....हवे तुं समज! तारा निजपदनी महत्ताने
तुं समज. जेम राजा पोतानुं राजसिंहासन छोडीने उकरडामां सूए ते शरम छे, तेम तुं
अनंतगुणोनो चैतन्यराजा, तारा शुद्धचैतन्यना राजसिंहासनने भूलीने तुं परभावोना
उकरडामां सूतो, ए शरम छे. एवी अंधबुद्धिने तुं छोड.....जागृत था....ने परभावोथी भिन्न
तारा शुद्ध चैतन्यने तुं देख. भाई, तुं तो सिद्धभगवान जेवो छे–
सर्व जीव छे सिद्धसम, जे समजे ते थाय;
सद्गुरुआज्ञा जिनदशा निमित्त कारणमांय.