Atmadharma magazine - Ank 242-243
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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वर्षः २१वीर सं.
अंकः २–३र४९०
२४२–२४३
तंत्री
जगजीवन बावचंद दोशी
मागशर–पोष
जी....व.....न.....मां
जीवनमां हरेक प्रसंगे अध्यात्मनो प्रेम अने धैर्य राखवुं
ए आपणुं कर्तव्य छे. परंतु एटलामां ज आपणो प्रयत्न पूरो
नथी थतो; ए तो हजी प्रयत्न उपडवानी पूर्व भूमिका ज छे.
जीवनमां ए अध्यात्मप्रेमरूपी दादरो हाथमां आव्यो के तरत
तेना पगथिया चडवाना छे. अध्यात्मप्रेम ए अनुभवनो दादरो
छे. अध्यात्मप्रेम जेटलो वधु तेटलो अनुभव नजीक.
अध्यात्मनी चर्चा प्रेमपूर्वक सांभळे छे ते धन्य छे–एम
संतोए कह्युं छे, तो पछी साक्षात् अध्यात्मना अनुभवरूप
परिणमेला धर्मात्मानी शी वात!! एवा संतना शरणमां रहीने
जीवनमां अध्यात्मप्रेमने वधु ने वधु पुष्ट करीए ने
जीवनसाधना सफळ बनावीए....ए जीवनमां एक ज कर्तव्य छे.