Atmadharma magazine - Ank 242-243
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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मागशर–पोषः २४९०ः ३१ः
माटे गमे तेवा प्रसंगे जीवे खूब ज शांति ने धीरज राखवी. हिंमत राखवी ए
आपणुं काम छे. बीजुं विशेष न समजाय तो जीव अने शरीरनी जुदाइनो विचार
करवो तथा पंचपरमेष्ठी भगवानने याद करवा. शुं अरिहंत भगवानने के
साधुमुनिराजने कोइना मरणथी दुःख थाय छे? ना; तो आपणे शा माटे दुःखी थवुं?
अरिहंतप्रभुने दुःख नथी थतुं तो पछी आपणे बधाय पण अरिहंत प्रभुना वंशना ज
छीए.
आपणे जैन....आपणे जिनेश्वरदेवना भक्त....आपणने रोवाकूटवानुं न शोभे,
आपणे तो धर्मना उत्तम विचारोमां ज मन परोववुं.
श्रीकृष्ण ज्यारे जंगलमां झाड नीचे सूता हता ने तरस लागी हती, त्यारे तेमना
भाई तेमने माटे पाणी भरवा गया हता; त्यां तो श्रीकृष्णना बीजा एक भाईए
अजाणपणे छोडेलुं बाण श्रीकृष्णने लाग्युं ने तेओनुं मृत्यु थयुं. अहीं तो हजी बळभद्र
पाणी भरीने दोडता आवे छे के मारो भाई तरस्यो छे, तेने झट पाणी पाउं,–पण
आवीने जुए तो ते मरी गया छे!–अरे, आवा महापुरुषोने पण क्षणभरमां अणधार्युं
मरण आवी पडे छे,–तो बीजानी शी वात? जगतनी ए ज स्थिति छे. माटे जीवे शांति
राखवी ए कर्तव्य छे. (ज्यां दुःख कदी न प्रवेशी शकतुं त्यां निवास ज राखीए...)
ज्ञा....नी....नो....मा....र्ग
ज्ञानीनो मार्ग सुलभ छे पण ते पाळवो दुर्लभ छे. ए मार्ग विकट
नथी, सीधो छे, पण ते पामवो विकट छे. प्रथम साचा ज्ञानी
जोइए; ते ओळखवा जोइए, तेनी प्रतीत आववी जोइए. पछी
तेनां वचन पर श्रद्धा राखी निःशंकपणे चालतां मार्ग सुलभ छे.
पण ज्ञानी मळवा अने ओळखवा ए विकट छे, दुर्लभ छे, शंका
कर्या विना ज्ञानीओनो मार्ग आराधे तो ते पामवो सुलभ छे.
श्रीमद्राजचंद्रः उपदेशनोंधः १४