Atmadharma magazine - Ank 242-243
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः ३०ः आत्मधर्मः २४२–२४३
एक वैराग्य–पत्र
संसारमां संयोग–वियोगना अनेकविध प्रसंगो सदाय बन्या करता होय छे; एवा एक वैराग्यप्रसंगे
लखायेला पत्रनो थोडोक भाग जिज्ञासुओने उपयोगी समजीने अहीं प्रगट कर्यो छे.
निर्मोही आराधक सन्तोने नमस्कार
संसारमां आघात–प्रत्याघातना प्रसंगो सदाय बन्या ज करता होय छे. मोटा
मोटा मानवी पण क्षणभरमां फू थइ जता देखीए छीए; नानकडी उमरमां पण घणा
चाल्या जाय छे....आ जीवनी पोतानी पण ए ज स्थिति थवानी छे. छतां जीवनी टेव
पडी गइ छे एटले आवा प्रसंगे ते बहु दुःखी थाय छे. संसार साथेनो संबंध जेओ छोडे
छे तेओ ज दुःखी नथी थता.
जीव अने शरीर जुदा पडी जाय छे, ए वात नजरोनजर बने छे. पण जीव
तेनी जुदाइनो विचार नथी करतो. आ शरीरथी हुं जुदो पडीश त्यारे मारुं शुं थशे? हुं
क्यां जइश?–एटलो विचार जागे तोय जीवने घणी शांति मळे, ने आवा आघातना
दुःखने बदले वैराग्यभाव जागे.
जगतमां नाना–मोटा मृत्युना प्रसंगो बन्या ज करे छे, एक प्रसंग बने ने
थोडा वर्षे भूलाइ जाय, वळी बीजो प्रसंग बने, एवुं सदाय बन्या ज करे छे. सारा
प्रसंगो ने खराब प्रसंगो जगतमां सदाय बन्या ज करे छे. पण कोइ प्रसंग कायम
नथी रहेतो. वीस वर्षनो युवान भाई गूजरी जाय त्यारे केवो वैराग्यप्रसंग होय!
छतां ते पण काळक्रमे भूलाइ जाय छे के नहि? लग्न वगेरे सारा प्रसंगे जे हर्ष थयो
होय ते पण थोडा टाइमे भूलाय जाय छे, तेम मरण वगेरे प्रसंगे आघात थयो होय
ते पण थोडा टाइमे भूलाइ जाय छे.–ए बन्ने प्रकारना प्रसंगथी जुदो रहीने आत्मा
सदाय एवो ने एवो रह्या करे छे.–एने लक्षमां लेवाथी जगतना बधाय दुःख हळवा
पडी जाय छे.
अनेक बाइओने नानी उमरमां ज जे दुःख थाय छे ते लोको क्यां नथी जाणतां?–
छतां ए बधायना दुःख भूलाइ जाय छे के नहीं? स्नेहीजनना वियोगनुं कांइ झाझुं दुःख
नथी होतुं, पण आपणे पोते मोहथी तेने मोटुं रूप आपीने दुःखी थइए छीए. कोइ
स्नेहीजननो वियोग थाय तेथी कांइ आ आत्माने दुर्गतिमां नथी जवुं पडतुं, पण तेना
वियोग पाछळ बहु झाझो शोक ने आर्तध्यान करे तो जीवने दुर्गतिमां जवुं पडे छे.
शास्त्रकारो कहे छे के अरे जीव! जेनुं आयुष्य पूरुं थयुं ते तो कोइ काळे पाछुं आववानुं
नथी, तुं मफतनो हायवोय करीने शा माटे करम बांधे छे?