Atmadharma magazine - Ank 244
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: १०: आत्मधर्म माह: २४९०
तेओ ज अभिनंदनय छे. भलेने स्त्रीना शरीरमां होय, पण जे आत्मा आवा चैतन्यना
रसीला छे एवा धर्मात्मा अभिनंदनीय छे.
जितभव भगवाननी वाणी झीलीने तेओ निर्बाधपणे वीरताथी मोक्षमार्गने साधे छे ने
भवने जीतीने भगवान थाय छे.
‘ण मो जि णा णं. . . . जि द भ वा णं ’
प्रवचनमां चैतन्यदर्शक वीतरागवाणीनो आवो अद्भुत महिमा सांभळता
वीरमार्गसाधक जीवोना जयनादथी श्रोताजनोनी सभा गूंजी ऊठी–
जैनशासनशिरोमणी, दिव्यध्वनिना श्रोता कुंदकुंदाचार्यदेवनो..... जय हो.
दिव्यध्वनिना रहस्य खोलनार अमृतरसपानार गुरुदेवनी वाणीनो... जय हो.
कुंदकुंदाचार्यदेवना सुपुत्र शासनस्तंभ गुरुदेवनो जय... हो
मागसर वद ८ना आ प्रवचना अंतमां, परमार्थरसिक जीवो केवा
होय? वीरमार्गने साधवा नीकळ्‌या तेमनो पुरुषार्थ केवो होय?
तेमने रागनी रुचि न होय, – ए संबंधी एक रजपूतनुं सुंदर
शौर्यप्रेरक द्रष्टांत आप्युं हतुं.ते आ अंकमां आप हमणां जोशो. –
अंतरना परिणाम • • • • • • • • • • • • • • • • •
जे साधनो बतावे ते तरवाना साधनो होय तो ज खरां साधन; बाकी निष्फळ
साधन छे. व्य्वहारमां अनंता भांगा ऊठे छे तो केम पार आवे? कोई माणस
उतावळथी बोले तेने कषाय कहेवाय, कोई धीरजथी बोले तेने शांति देखाय; पण
अंर्तपरिणाम होय तो ज शांति कहेवाय.
(श्रीमद् राजचंद्र: उपदेशछाया: ८)