माह: २४९० आत्मधर्म : ९:
जिनवर भगवाने तो शुद्धात्मस्वरूपनी साधना वडे भवने जीत्या, ने ए जितभव–
जिनराजनी वाणीमां भव्यजीवोने माटे भवने जीतवानो मार्ग नीकळ्यो. वाह! चैतन्य खीले
एवी वात छे. –खीलवानी ज वात छे. भगवाननी वाणी सांभळता भव्यजीवोनो आत्मा
असंख्य प्रदेशे खीली ऊठे छे. –ए आत्मा पोते पूर्ण परमात्मा थईने ऊभो छे. त्यां तेमनी
वाणीमां पण परमात्मपदनी प्राप्तिनो ज उपाय आवे छे. ते सांभळतां कोईने क्षपकश्रेणी ऊपडे
छे, कोईने चैतन्यनी क्षायकसमकित थाय छे, –एम भगवाननी वाणीना निमित्ते धर्मनी धीकती
धारा चाले छे.
भगवाननी वाणी केवी छे? के मधुर छे... परमार्थरसिक जीवोना मनने हरनारी छे...
भगवाननी वाणीमां चैतन्यनो महिमा झळकी रह्यो छे, ते सांभळतां ज परमार्थरसिक जीवो मुग्ध
बनी जाय छे: वाह! प्रभु! तारी वाणी अलौकिक चैतन्यने प्रकाशनारी छे. चैतन्यना निर्विकल्प
आनंदनो स्वाद चखाडनारी आपनी वाणी, तेनी मधुरतानी शी वात! एनी मीठाशनी शी वात!
ए वाणीनो नाद एक वार पण जेणे सांभळ्यो तेनुं मन हराई जाय छे, एटले चैतन्य सिवाय
बीजा कोई पदार्थमां एनुं मन लागतुं नथी. आ रीते भगवाननी वाणी–जे परमार्थरसिक छे, जे
शुद्धात्मानी शांतिना रसीला छे–एवा जीवोना मनने हरनारी छे, वाणी सांभळतां ते जीवोनो
उपयोग मनथी खसीने अतीन्द्रिय आनंद तरफ झूकी जाय छे. भगवाननी वाणी चैतन्यनुं
अवलंबन छोडावे छे, –ए रीते पण ते मनोहर छे. सम्यग्द्रष्टि–तीर्यंचथी मांडीने गणधरादि संतो
ते बधाय परमार्थरसिक छे, निर्विकल्प चैतन्यसमाधिमां ते झूलनारा छे.. तेओ पण बहु ज
आदरपूर्वक, घणा विनयपूर्वक भगवाननी वाणी सांभळे छे. भगवाननी वाणी मनहर मीठी छे.
आपणे भक्तिमां पण गवाय छे के–
जिणंदचंदवाणी, अनुपम अमी समी छे,
गुणरत्न केरी खानी बुधमानसे रमी छे.
मीठास जेनी जाणी, गर्वो बधां गळे छे,
शरमाई मीठी द्राक्षो वनवासने करे छे.
परमार्थरसिक जीवोने आवी ज वाणी गमे, बीजी वाणी गमे नहि; चैतन्यना अनुभवना
वीतरागरसने घोळावनारी वाणी सिवाय बीजी वात मुमुक्षुने गोठे नहि. भगवाननी वाणीनी
मीठास पासे मीठा द्राक्षना वेला शरमाईने वनमां चाल्या गया.... के अरे! भगवाननी
वीतरागीवाणीनी मीठास पासे अमारी मीठासनी शी किंमत!! –गणधरो पण जे सांभळता
वीतरागरसमां झूली ऊठे... ए वाणीनी मधुरतानी शी वात!! जुओने, आ कुंदकुंदाचार्यनी वाणी
पण केवी मधुर छे! ते केवी हितोपदेशी छे! आम जाणे शुद्धात्माने सामे खडो करीने साक्षात्कार
करावे छे. एमणे तो भगवाननी वाणी साक्षात् सांभळी छे ने!! एटले तेमनी वाणीमां पण
एना रणकार छे. आवी वीतरागी वाणी द्वारा मुमुक्षुओ चैतन्यने साधे छे, वीरपणे
वीतरागमार्गने साधे छे,