Atmadharma magazine - Ank 244
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: ८: आत्मधर्म माह: २४९०
रूप जे परम शांति तेनो मार्ग वीतरागनी वाणी बतावे छे.
वीतरागदेवनी वाणी साक्षात् झीलीने कुंदकुंदाचार्यदेवे आ शास्त्रोमां गूंथी छे. भरतक्षेत्रमां
जन्म ने विदेहना भगवानना भेटा... अहा! एनी पवित्रतानी शी वात? ने एनां पुण्यनी शी
वात! जेम तीर्थंकरनी पवित्रता अने पुण्य बंने मोटा, तेम आचार्यदेवने पण पवित्रता अने
पुण्य बंनेनो कोई अलौकिक मेळ थई गयो छे. यात्रामां श्रवणबेल–गोलमां बाहुबली
भगवानना दर्शन कर्यां
त्यारे जाणे अंदर साक्षत् वीतरागता भरी होय
ने मुद्रा उपर पुण्यनो अतिशय तरवरतो होय
एवो अद्भुत देखाव छे. पवित्रतानो अने
पुण्यनो जाणे पिंडलो! चैतन्यनो महिमानो
चितार एना सर्वांगे तरवरे छे. अद्भुत देखाव
छे, विश्वनी एक अजायबी छे. अहीं कहे छे के
आवा चैतन्यस्वरूपने भगवाननी वाणी देखाडे
छे. चैतन्यनी परम शांतिनो अनुभव केम थाय
ते भगवाननी वाणीए बताव्युं छे. आ
पंचमकाळमां पण निजस्वरूपनुं पोतानुं काम
साधनारा मुनिओ तो घणाय थया; पण तेनी
साथे बहारमां पण भगवाननो भेटो करीने
आवो मार्ग टकावी राखवानुं अलौकिक कार्य
कुंदकुंदाचार्यदेवे कर्युं. आ भरतक्षेत्रना धर्मी जीवो
उपर तेमनो मोटो उपकार छे.
भगवाननो आत्मा तो अलौकिक ने तेमनी वाणी पण कोई अलौकिक! एमनी आत्म
शक्तिनी तो शी वात! पण तेमना केवळ ज्ञानमांथी नीकळती वाणी पण चैतन्यना अलौकिक
रहस्योथी भरेली छे. चैतन्यभगवान पोताना स्वभावने घोळतो ऊभो थयो ने वच्चे
साधकभावमां रागथी जे अलौकिक पुण्य बंधाया तेना फळमां तीर्थंकरादिनी एवी अलौकिक वाणी
नीकळे छे के जे सांभळतां मुमुक्षुने तो असंख्यप्रदेशोना रोमरोम उल्लसी जाय..... चैतन्यना प्रदेशो
उल्लासथी खीली जाय! अहीं आत्मा केवळज्ञानपणे पूरो थयो त्यां वाणी पण असंख्यप्रदेशेथी
एक साथे पूर्ण रहस्यने लेती प्रगटी, ते वाणी त्रण जगतना जीवोने शुद्धात्मानी प्राप्तिनो
हीतकरमार्ग उपदेशे छे.