Atmadharma magazine - Ank 244
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: १२: आत्मधर्म माह: २४९०
छतां तेमां लाग्यो रहे छे, ते मोटी दरिया भराय एवडी–मूर्खाई छे अने जो अंतरमां
चैतन्यनी प्राप्तिनो प्रयत्न करे तो अंर्तर्मुहूर्तमां तेनी प्राप्ति थाय ने सादिअनंतकाळनुं सुख
प्राप्त थाय. स्वरूपना अभ्यासवडे स्वरूपनी प्राप्ति जरूर थाय छे. परनी प्राप्ति तो न थाय पण
पोतानी वस्तु तो पोतामां मोजूद छे, जो चेतीने–जागृत थईने जुए तो पोतानुं स्वरूप
पोताना वेदनमां आवे छे. पोतानुं स्वरूप कांई पोताथी दूर नथी, अंतमुख थतां पोते ज ज्ञान
आनंदस्वरूप छे–एम अनुभवमां आवे छे. उत्कृष्ट प्रयत्न करे तो एक अंतमुहूर्तमां ज
अज्ञाननो पडदो तोडी नांखीने स्वस्वरूपनो अनुभव थाय छे. पण शिष्यने बहु कठण लागतुं
होय तो तेने वधुमां वधु छ महिना लागवानुं कह्युं छे; निष्प्रयोजन कोलाहल छोडीने स्वरूपना
प्रयत्नमां लागवाथी तत्काळ तेनी प्राप्ति थाय छे. पामनारा अंतर्मुंहर्तमां पाम्या छे;
अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान पण थाय छे, तो पछी सम्यग्दर्शन तो सुगम छे. पण ते माटे अंतर्मुख
प्रयत्न जोईए. नजरनी आळसे पोते पोताना स्वरूपने देखतो नथी, –पण छे तो अंतरमां
ज. माटे हे भव्य! बीजो बधो कोलाहल छोडीने एक चिदानंदतत्त्वनी प्राप्तिना प्रयत्नमां तारा
उपयोगने जोड–जेथी तुरतमां ज तने तारो आत्मा अनुभवमां आवशे. आ रीते संतोए
करुणापूर्वक अनुभवना अभ्यासनी प्रेरणा आपी छे.
पहेलुं काम
आटलुं काम पती जाय पछी आत्मानुं करशुं, हमणां आ काम छे ने ते
काम छे–एवुं बहानुं जीव काढ्या ज करे छे. परंतु, जींदगीमां कांई पण
कामकाज न होय–एवो कोई दिवसबबब आवशे खरो? राह जोईने
बेसी रहेवाथी तो निवृत्ति कदी मळे ज नहि, ने जींदगीना किंमतीमां
किमती दिवसो आमने आम वेडफाई जाय छे–पाणीना पूरनी जेम.
माटे–
“सौथी पहेलो आत्मा.... ने बीजुं बधुंय पछी.”