माह: २४९० आत्मधर्म : २७:
जुओने.! बाहुबली भगवान केवा अडोल ऊभा छे! जाणे मोक्षने केम साध्यो ते दर्शावी
रह्या होय!! एवो अद्भुत देखाव हतो.
आ रीते तीर्थधाम प्रत्ये बहुमाननो भाव आवे.
रत्नत्रयरूपे परिणमेला जीवने पण ‘तीर्थ’ कहेवाय छे, केमके जेनाथी तराय ते तीर्थ छे;
रत्नत्रयरूप नौकावडे ते संसारने तरे छे माटे ते तीर्थ छे. अनुभवनी प्रीतिवाळा मुमुक्षुजीवने
परंतु अंतरमां धर्मात्माने ते वखते भान छे के आ भाव परद्रव्याश्रित छे, ते मारा
मोक्षनुं साधन खरेखर नथी; जेटलो भाव मारा स्वद्रव्यने अवलंबे ते ज मोक्षनुं साधन छे.
अहीं कोई एक जीवनी वात नथी, आ तो महा सिद्धांत छे एटले बधाय जीवोने माटे
त्रणे काळनो अबाधित नियम छे. कोई पण क्षेत्रे ज्यारे जे कोई जीवने मोक्ष साधवो होय ते आ
नियम अनुसार ज मोक्षने साधी शके छे. ‘सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्राणि मोक्षमार्गः’ एम
मोक्षशास्त्रनुं पहेलुं ज सूत्र छे तेना बीजडां आ समयसारमां भरेलां छे.
सर्वकर्मरहित पूर्ण शुद्ध आत्मपरिणाम ते मोक्ष छे; तो ते मोक्षनुं कारण पण तेवी जातनुं
ज होवुं जोईए, एटले के मोक्षना कारणरूप परिणाम पण कर्मरहित, शुद्ध होवा जोईए. जे
परिणामथी कर्म बंधाय ते परिणाम मोक्षनुं साधन नथी. आत्माना आश्रये थतां जे वीतरागी
श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप परिणाम ते ज मोक्षनुं साधन छे. –ए नियम छे.
माटे हे भव्य! तारा आत्माने तुं आवा मोक्षमार्गमां जोड! ने बीजा भावोनुं ममत्व
छोड! स्वद्रव्यने आश्रित सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे मोक्षमार्ग तेमांज तारा आत्माने जोड–
एम सूत्रनी अनुमति छे.
अहा! जेने साधकपणुं प्रगटाववुं होय तेने साधकपणुं केम प्रगटे तेनी आ वात छे.
मोक्षने साधवा माटे सूत्रनी अने संतोनी आज्ञा तो आम छे के तुं तारा स्वद्रव्यनो आश्रय करीने
तेमां ज विहर! तुं तारा आत्माने स्वद्रव्यमां जोड.... तो तुं मोक्षमार्गमां आव्यो एम सूत्रनी
अने संतोनी संमति छे.
‘सुवर्ण सन्देश’ मांथी साभार