: २६: आत्मधर्म माह: २४९०
साधकपणुं प्रगटावा शुं करवुं?
अहा! जेने साधकपणुं प्रगटाववुं होय तेने साधकपणुं केम प्रगटे तेनी आ वात
छे. मोक्षने साधवा माटे सूत्रनी अने संतोनी आज्ञा तो आम छे के तुं तारा स्वद्रव्यनो
आश्रय करीने तेमां ज विहर! तुं तारा आत्माने स्वद्रव्यमां जोड... तो तुं मोक्षमार्गमां
आव्यो–एम सूत्रनी अने संतोनी संमति छे.
(स. गा. ४१०–४११ उपरना प्रवचनमांथी)
आत्मानो वीतरागी ज्ञानस्वभाव छे.
ते वीतरागीस्वभावनी निर्विकल्प–वीतरागी श्रद्धा, तेनुं वीतरागीज्ञान, ने तेमां वीतरागी
लीनता, –एवा रत्नत्रयस्वरूप मोक्षमार्ग छे.
आवा मोक्षमार्ग सिवाय बीजो कोई मोक्षमार्ग नथी, माटे जेणे साधकपणुं प्रगटाववुं होय
ने मोक्ष ने साधवो होय तेणे आत्माना आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप तीर्थनी उपासना
करवी. द्रव्यलिंग तो शरीराश्रित होवाथी परद्रव्य छे, ते कांई मोक्षनुं कारण नथी.
द्रव्यलिंगने शरीराश्रित कह्युं तेमां व्रतमहाव्रतना शुभविकल्पो पण समजी लेवा, केमके ते
पण परद्रव्यने ज आश्रित छे, तेथी ते मोक्षनुं कारण नथी.
मोक्षनुं कारण तो स्वद्रव्यने एटले के आत्माना स्वभावने आश्रित एवा जे सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्र ते ज मोक्षमार्ग छे, –एम कहे छे.
‘कोण कहे छे? ’ के भगवान जिनदेवो कहे छे. सर्वे जिनेन्द्रभगवंतोए शुद्धज्ञानना
आश्रये (एटले के शुद्ध आत्माना आश्रये) ज मोक्षमार्गनी आराधना करी; ने ते
जिनभगवंतोए बीजा मुमुक्षु श्रोताजनोने पण ए ज मोक्षमार्ग कह्यो.
गीरनार वगेरे मोक्षधामनी यात्रानो भाव कुंदकुंदआचार्य जेवा महासंतोने पण आव्यो
हतो, तेओ गीरनारतीर्थनी यात्राए पधार्या हता, एवो बहुमाननो विकल्प धर्मीने आवे छे.
श्रीमद् राजचंद्रजी पण दक्षिण देशना ५र्वतो नीहाळीने बहुमानथी कहे छे के अहो! ए तरफना
नग्न ऊंचा अडोलवृत्तिथी उभेल पहाड नीरखी स्वामी कार्तिकेयादि (मुनिओ) नी अडोल
वैराग्यमय दिगम्बरवृत्ति याद आवती हती. ते स्वामी कार्तिकेयादिने नमस्कार.