Atmadharma magazine - Ank 244
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: ३०: आत्मधर्म माह: २४९०
• • • भदज्ञनथ ज बधन अटक छ • • •
(श्री समयसार कर्ताकर्म अधिकार गा. ७१–७२ना प्रवचनमांथी दोहन)
चैतन्यतत्त्व तो अंतर्मुख छे अने रागादि भावो तो बहिर्मुख छे, तेमने एकपणुं नथी.
ज्यां सुधी चैतन्यनी अने रागनी भिन्नताने न जाणे त्यां सुधी भेदज्ञानरूप बोधिबीज प्रगटे
नहिं. हुं तो चैतन्य छुं ने रागादिभावो तो चैतन्यथी भिन्न छे, ज्ञानमांथी रागनी उत्पत्ति नथी,
ने रागमांथी ज्ञाननी उत्पत्ति नथी. आवुं भेदज्ञान करे त्यारे जीवनी परिणति रागथी खसीने
अंतरमां चैतन्यस्वभाव तरफ वळे छे, ने त्यारे सम्यग्दर्शनादि धर्मनी अपूर्व शरूआत थाय छे.
* जीवने ज्यां भेदज्ञान थयुं त्यां तेने धर्मलब्धिनो काळ आव्यो छे. भेदज्ञान ते ज धर्मलब्धि
छे. धर्म करनार जीव काळ सामे जोईने बेसी रहेतो नथी पण पोताना स्वभावमां अंतर्मुख
थाय छे, ने स्वभावमां अंतर्मुख थतां पांचे लब्धि एक साथे आवी मळे छे. स्वभावमां
अंतर्मुख थाय ने धर्मलब्धिनो काळ न होय एम बने नहि.
* प्राथमिक शिष्ये धर्मलब्धिने माटे प्रथम भेदज्ञाननो अभ्यास करवो. जेम जीव अने अजीव
द्रव्योने अत्यंत भिन्नताछे, तेम चैतन्यभावने अने रागादि भावोने पण अत्यंत भिन्नता
छे, बंनेनी जात ज जुदी छे. –आवुं अंतरनुं भेदज्ञान ते कोई शुभराग वडे थतुं नथी पण
चैतन्यना ज अवलंबने थाय छे, भेदज्ञान ते अंतरनी चीज छे, ए कोई बहारना
भणतरनी के शुभरागनी चीज नथी.
* अमुक शास्त्रो जाणे तो ज आवुं भेदज्ञान होय, के व्रत–महाव्रत पाळे तेने ज आवुं भेदज्ञान
होय–एवुं कोई भेदज्ञाननुं माप नथी. अंतरना वेदनमां जेणे चैतन्यने अने रागने भिन्न
जाण्या, ने उपयोगने रागथी छूटो पाडीने चैतन्यमां वाळ्‌यो ते जीव भेदज्ञानी छे; शास्त्रोए
जेवी ज्ञान अने रागनी भिन्नता बतावी छे तेवी परिणतिरूपे ते धर्मात्मानुं साक्षात्
परिणमन थयुं छे.
* रागथी तो अत्यंत भिन्नता करवानी छे, तो ते भिन्नता रागना अवलंबने केम थाय?
रागनो जेमां अभाव छे एवा चैतन्यना अवलंबने ज रागनुं ने ज्ञाननुं भेदज्ञान थाय छे.
* जुओ, आमां निश्चय–व्यवहारनुं भेदज्ञान पण आवी गयुं. निश्चय तो स्वाश्रित
चैतन्यस्वभाव छे, ते स्वभावना आश्रये भेदज्ञान थाय छे, ने व्यवहार तो परा