घणी स्वरूप लीनताना झूले झूलता हता. लगभग २००० वर्ष पहेलां महाविदेह गया हता......
त्यांथी भगवाननी दिव्यध्वनिनो संदेश लाव्या, ने अहीं आवीने आ प्रवचनसार वगेरे शास्त्रो
रच्या छे, मद्रासथी ८० माईल दूर पोन्नूर पहाड छे त्यां तेओ ध्यान करता हता ने त्यांथी विदेह
गया हता. ने त्यांज शास्त्रो रच्या हता. त्यां तेमना प्राचीन चरण पादुका छे. उपर चंपाना झाड
छे, बे गूफाओ छे. जूना शिलालेखोमां पण लखाण छे के कुंदकुंद आचार्य महाऋद्धि धारी संत
हता, अने तेमने जमीनथी चार आंगळ उपर चालवानी लब्धि हती; विदेहक्षेत्रे जईने तेमणे
सीमंधरपरमात्मानी वाणी सांभळी हती.
दर्शन करवानो लाभ मळ्यो.
श्रवणबेलगोलमां छे; जे दुनियानी आश्चर्यकारी वस्तुमां गणाय छे. त्यां बे पहाडो छे, तेना उपर
पण कुंदकुंदआचार्यदेव संबंधीघणा शिलालेखो छे; त्यां पण फरीने जात्रा करवा जवानुं छे.
वगेरेमां तो अध्यात्मना दरिया खुल्ला मुक्या छे. अरे, आत्मा! तुं ज परमात्मा छो..... युक्तिथी,
अनुभवथी, गुरुपरंपराथी ने सर्वज्ञनी वाणीथी मेळवेला आचिंत्य निजवैभवथी तेमणे
शुद्धात्मानुं स्वरूप बताव्युं छे. प्रवचन एटले दिव्यध्वनि तेनो सार आ प्रवचनसारमां तेमणे
भरी दीधो छे. भवसागरनो किनारो तेमने तद्न नजीक आवी गयो हतो. आ भरतक्षेत्रना जीवो
उपर तेमनो महान उपकार छे.