स्वद्रव्यनो आश्रय करवो. समस्त परद्रव्यो प्रत्ये मध्यस्थता क््यारे थाय? –के
स्वद्रव्य तरफ वळे त्यारे. हजी जेने परथी भिन्नतानो अभिप्राय नथी. रागथी
भिन्नतानुं भान नथी, परनी क्रियाथी ने रागथी लाभ माने छे तेने तेना प्रत्ये
मध्यस्थता केम थशे? जेनाथी लाभ माने तेनाथी विमुख केम थाय? तेनो पक्षपात
केम छोडे? अहीं तो जेणे परथी भिन्नतानुं भान कर्युं छे, रागथी पार चैतन्यनुं भान
कर्युं छे, ते धर्मात्मा हवे संपूर्ण वीतरागताने माटे केवो पुरुषार्थ करे छे? तेनी वात
छे. जगतना बधा पदार्थो–निंदाना शब्दो के साक्षात् दिव्यध्वनि, सिद्ध परमात्मा के
निगोद, परमेश्वर के परमाणु–ते समस्त परद्रव्यो माराथी अत्यंत भिन्न छे; तेमना
प्रत्ये अत्यंत मध्यस्थ थईने हुं उपयोगस्वरूप मारा आत्माने ज अवलंबु छुं आम
स्वद्रव्यना अवलंबनमां अशुद्धउपयोगनो नाश थाय छे, एटले परद्रव्यनो संग थतो
नथी, आत्मा एकलो शुद्धपणे–मुक्तपणे शोभे छे. परद्रव्यथी अत्यंत विभक्तपणुं
(एटले के मोक्ष) साधवानी आ रीत छे.
स्वद्रव्यमां ज छे. ए सिवाय कोई पण परद्रव्यने अनुसरवाथी मने लाभ नथी.
आवो विश्वासनो ध्वनि आवे ने स्वज्ञेयनो अचिंत्य महिमा भासे तो स्वद्रव्य तरफ
उपयोग वळे ने शुद्धता थाय. आ सिवाय बीजा लाख उपाये पण शुद्धता थाय नहीं
ने शुद्धता थया वगर परद्रव्यनो संग छूटे नहीं ने जन्म मरण माटे नहीं.
स्वद्रव्य तरफ ढळुं छुं; तेमां मारा उपयोगने एकाग्र करीने निश्वळ रहुं छुं. उपयोग
वडे ज्ञानानंदस्वरूप निजात्माने ज ध्यावुं छुं. आ लखती वखते तो विकल्प छे पण
अंदर शुद्धोपयोगनी भावनानुं जोर छे; विकल्प तरफ उपयोगनुं जोर जरापण नथी,
उपयोगनुं जोर स्वभाव तरफ ज छे, बीजी ज क्षणे विकल्प तोडीने अंदर स्वरूपमां
उपयोग ठरी जाय छे.
उपयोगने अंतरमां वाळीने आत्माने ध्यावो ने परद्रव्य प्रत्ये मध्यस्थ थाओ. जुओ,
आ मोक्ष माटेनो धर्मात्मानो अभ्यास! केवो अभ्यास करवो? –के परद्रव्य प्रत्ये
अत्यंत मध्यस्थ