Atmadharma magazine - Ank 245
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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पोन्नूर यात्रा–अंक आत्मधर्म : १९ :
परिणतिने आधीन थाय छे त्यारे ज ते मलिन थाय छे, बीजा कोई कारणथी
नहि. माटे शुद्धोपयोगने अर्थे मुमुक्षुए समस्त परद्रव्योनो आश्रय छोडीने एक
स्वद्रव्यनो आश्रय करवो.
समस्त परद्रव्यो प्रत्ये मध्यस्थता क््यारे थाय? –के
स्वद्रव्य तरफ वळे त्यारे. हजी जेने परथी भिन्नतानो अभिप्राय नथी. रागथी
भिन्नतानुं भान नथी, परनी क्रियाथी ने रागथी लाभ माने छे तेने तेना प्रत्ये
मध्यस्थता केम थशे? जेनाथी लाभ माने तेनाथी विमुख केम थाय? तेनो पक्षपात
केम छोडे? अहीं तो जेणे परथी भिन्नतानुं भान कर्युं छे, रागथी पार चैतन्यनुं भान
कर्युं छे, ते धर्मात्मा हवे संपूर्ण वीतरागताने माटे केवो पुरुषार्थ करे छे? तेनी वात
छे. जगतना बधा पदार्थो–निंदाना शब्दो के साक्षात् दिव्यध्वनि, सिद्ध परमात्मा के
निगोद, परमेश्वर के परमाणु–ते समस्त परद्रव्यो माराथी अत्यंत भिन्न छे; तेमना
प्रत्ये अत्यंत मध्यस्थ थईने हुं उपयोगस्वरूप मारा आत्माने ज अवलंबु छुं आम
स्वद्रव्यना अवलंबनमां अशुद्धउपयोगनो नाश थाय छे, एटले परद्रव्यनो संग थतो
नथी, आत्मा एकलो शुद्धपणे–मुक्तपणे शोभे छे. परद्रव्यथी अत्यंत विभक्तपणुं
(एटले के मोक्ष) साधवानी आ रीत छे.
अहो, पहेलांं तो अंतरमांथी विश्वासनो एवो ध्वनि ऊठवो जोईए के मने
मारा स्वद्रव्यना अवलंबनमां ज लाभ छे. मारा ज्ञानना ने आनंदना संपूर्ण निधान
स्वद्रव्यमां ज छे. ए सिवाय कोई पण परद्रव्यने अनुसरवाथी मने लाभ नथी.
आवो विश्वासनो ध्वनि आवे ने स्वज्ञेयनो अचिंत्य महिमा भासे तो स्वद्रव्य तरफ
उपयोग वळे ने शुद्धता थाय. आ सिवाय बीजा लाख उपाये पण शुद्धता थाय नहीं
ने शुद्धता थया वगर परद्रव्यनो संग छूटे नहीं ने जन्म मरण माटे नहीं.
आचार्यदेव कहे छे के हुं परप्रत्ये मध्यस्थ थईने स्वद्रव्यमां लीन थाउं छु.
परप्रत्ये मध्यस्थ थाउ छुं एटले ते तरफथी मारा उपयोगने पाछो खेंचुं छुं, ने
स्वद्रव्य तरफ ढळुं छुं; तेमां मारा उपयोगने एकाग्र करीने निश्वळ रहुं छुं. उपयोग
वडे ज्ञानानंदस्वरूप निजात्माने ज ध्यावुं छुं. आ लखती वखते तो विकल्प छे पण
अंदर शुद्धोपयोगनी भावनानुं जोर छे; विकल्प तरफ उपयोगनुं जोर जरापण नथी,
उपयोगनुं जोर स्वभाव तरफ ज छे, बीजी ज क्षणे विकल्प तोडीने अंदर स्वरूपमां
उपयोग ठरी जाय छे.
आचार्यदेव कहे छे के अमे आम करीए छीए, –उपयोगने अंतरमां वाळीने
आत्माने ध्यावीए छीए माटे हे जीवो! तमे पण आ प्रमाणे करो. तमे पण
उपयोगने अंतरमां वाळीने आत्माने ध्यावो ने परद्रव्य प्रत्ये मध्यस्थ थाओ. जुओ,
आ मोक्ष माटेनो धर्मात्मानो अभ्यास! केवो अभ्यास करवो? –के परद्रव्य प्रत्ये
अत्यंत मध्यस्थ