पधार्या, त्यां उमंगथी स्वागत थयुं. सवारे समयसारनी कळशटीका (जे हिंदीमां छपाय
छे) तेना उपर, तथा बपोरे नियमसार उपर सुंदर प्रवचनो थता, रात्रे तत्त्वचर्चा थती.
गुरुदेव राजकोटमां फागण सुद १र सुधी रह्या; फागणसुद १र ना रोज राजकोट–
जिनमंदिरनी प्रतिष्ठानी वर्षगांठ हती. फागणसुद त्रीजना रोज राजकोट शहेरमां श्री
समयवसरण मंदिर अने मानस्तंभ–ए बंनेना शिलान्यासनुं मुहूर्त एक साथे थयुं. पू.
गुरुदेवनी उपस्थितिमां ने तेमनी मंगल छायामां एक साथे बंनेनुं शिलान्यास करतां
राजकोटनी जनताने तथा सर्वे मुमुक्षुओने घणो उत्साह थतो हतो. शरूआतमां पूजनादि
बाद गुरुदेवना सुहस्ते मंगल–स्वस्तिक करावीने शेठ श्री मूळजीभाई चत्रभुज
लाखाणीना कुटुंबीजनोए हर्षोल्लासपूर्वक श्री समवसरण मंदिरनुं शिलान्यास कर्युं अने
शेठ श्री मोहनलाल कानजीभाई धीया तथा तेमना कुटुंबीजनोए हर्षोल्लासपूर्वक श्री
मानस्तंभनुं शिलान्यास कर्यु. आ प्रसंगे समवशरण तथा मानस्तंभ माटेना फंडनी
रकमो जाहेर थई हती–जेमां त्रणलाख रूा. उपर थया हता. आ मंगळ प्रसंग माटे
राजकोटना मुमुक्षुओने धन्यवाद! अष्टह्निका प्रसंगे नंदीश्वर मंडल विधान पण थयु हतुं.
फागण सुद १३ नी सवारमां जोरावरनगर थईने फा. सुद १४ ना गुरुदेव रखियाल
स्टेशने पधार्या.
फागण सुद १४ थी फा. वद त्रीज सुधी गुरुदेवनी उपस्थितिमां धामधूमथी उजवायो.
गुजरातनी जनताए पोताना अनोखा भक्तिभावथी आ उत्सवने शोभाव्यो.
गुजरातना दि. जैन समाजमांथी पांच हजार उपरांत माणसो आ उत्सवमां भाग लेवा
आव्या हता. चोसठऋद्धिधारी भगवंतोनुं मंडलविधान, ईन्द्रप्रतिष्ठा वगेरे विधि उपरांत
रोज रात्रे भक्ति–भजन थता, तेमां गुजराती भाईओ हर्षथी नृत्य करता. गुजरातना
समाजमां भाईश्री बाबुभाईनो सारो प्रभाव छे; आ प्रसंगे तेमणे उल्लासथी सुंदर
व्यवस्था करीने उत्सवने शोभाव्यो हतो, ने पोते सजोडे आजीवन ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लीधी
हती. रखियालनी प्रतिष्ठा ए गुजरातनो एक महान उत्सव हतो; उछामणी वगेरेमां
सौ होंसथी भाग लेता, तेमां सवालाख उपरांतनी आवक थई हती.