Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. चैत्र : आत्मधर्म : ३ :
उमराळामां गुरुदेवनुं प्रवचन
ता. र–४–६४ना रोज गुरुदेव
जन्मधाम उमराळामां पधारतां
उमराळानी जनताए आनंदपूर्वक
स्वागत कर्युं हतुं; अने बपोरना
प्रवचनमां हजार जेटला माणसो
आवेला, तेमां ग्राम्यजनता पण
समजी शके एवो सुगम–अध्यात्म
उपदेश गुरुदेवे आप्यो हतो.
आ समयसार एक आत्मशास्त्र छे. आत्मामां पूर्ण ज्ञान ने पूर्ण आनंद
शक्तिरूपे भर्यो छे, तेनुं भान प्रगट करीने, तेमांथी पूर्ण ज्ञानदशा प्रगट करी ते सर्वज्ञ
परमात्मा थया. आ दरेक आत्मा पण एवा ज स्वभाववाळो छे, पण पोते पोताने
भूलीने चारगतिमां अनंतकाळथी रखडी रह्यो छे. आ आत्मा देहथी भिन्न ने विकारथी
भिन्न शुं चीज छे–तेना भान वगर बधी साधना जूठी छे. आत्मा सच्चिदानंदस्वरूप छे.
आत्मानो कदी नाश नथी. आ देह देखाय छे ते कांई आत्मा नथी; शब्दो बोलाय ते पण
कांई आत्मा नथी. पुण्य–पापनी शुभ–अशुभ लागणी जीव करे तेना फळमां तेने
अनुकूळ के प्रतिकूळ सामग्री मळे, पण तेनाथी कांई चोराशीना अवतारनो अंत न
आवे. आत्मानी शक्तिमां पडेली पूर्ण आनंददशा प्रगट थया तेनुं नाम मुक्ति छे.
एकवार आवी मुक्ति थया पछी फरीने अवतार न होय. पण तेने माटे एकवार
आत्माना स्वरूपनी समजण करवी जोईए. तेथी कहे छे के:–
जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनंत,
समजाव्युं ते पद नमुं, श्री सद्गुरु भगवंत,