Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : प्र. चैत्र:
जेने ज्ञान थयुं, आत्मानुं भान थयुं ते गृहवासमां होय तो य तेनुं अंतर
संसारथी जुदुं छे, जेम टोपरामां अंदरनो सफेद गोटो छालां ने काचलाथी जुदो छे, तेम
धर्मी पोताना चैतन्य गोळाने देहथी ने कर्मथी जुदो जाणे छे. अरे, हाथी जेवो देह हो के
कीडीनी देह हो, –ए बंने देह अहीं पडी रहेशे ने आत्मा तेनाथी जुदो छे ते बीजे चाल्यो
जशे. राता छीलका जेवा रागथी पण चैतन्य गोळो जुदो छे. पर चीजो आत्माथी जुदी
ज छे, ते कांई आत्मा साथे रहेती नथी, ने आत्मानो संसार कांई तेमां रहेतो नथी.
आत्माना ज्ञानानंद स्वभावने ओळखीने तेमां ठरे तेनुं नाम धर्म छे. आवो धर्म एक
सेकंड पण जीवे नथी कर्यो. जे करवानुं छे ते जीवे कदी नथी कर्युं; अने जे नथी करवा जेवुं
तेना कर्तृत्वमां अनादिथी रोकायो छे. जेम साकरनो स्वभाव मीठो छे ते तेनाथी जुदो
नथी तेम आत्मानो ज्ञानस्वभाव आत्माथी जुदो नथी. पण, जेम साकर एवा त्रण
अक्षरो साकर नामनी वस्तुथी जुदो छे, तेम ‘आत्मा’ एवा अढी अक्षर आत्मा
वस्तुथी जुदा छे. शब्दोमां आत्मा नथी ने आत्मामां शब्दो नथी.
अहीं प९मा कळशमां आचार्यदेव कहे छे के जेम हंस दूध अने पाणीने भिन्न
अनुभवे छे तेम भेदज्ञानी धर्मात्मा ज्ञानीने अने विकल्पोने भिन्न जाणे छे; ते ज्ञानी
विकल्पोना कर्तापणे जराय परिणमतो नथी, ज्ञाता ज रहे छे.
आ उमराळाथी लगभग १परप माईल थाय छे, एवा पोन्नूर उपर एक
महामुनि कुंदकुंदाचार्यदेव रहेता हता, अतीन्द्रिय आनंदनी मोजमां रहेनारा ए संते आ
समयसारशास्त्र रच्युं छे, ने पछी अमृतचंद्राचार्यदेवे तेना उपर कळशो रचीने कलश
चढाव्यो छे. अंतरद्रष्टिने समजावनार ए अलौकिक शास्त्र छे. तेमां ज्ञान अने विकारनुं
अलौकिक भेदज्ञान कराव्युं छे. जेम सोनानो पारखू धूळधोयो धूळने अने सोनाने जुदा
शोधीने सोनुं मेळवी ल्ये छे. ––पण एम कोण करी शके? के जे सोनाने ओळखतो होय
ते; तेम अंतरमां ज्ञान अने रागनी भिन्नतानो विवेक करनार धर्मात्मा सुवर्ण जेवो जे
चैतन्यस्वभाव अने धूळ जेवा जे रागादि परभावो–तेमने भिन्न जाणे छे. नाना बाळक
पण आत्मानी जिज्ञासा करी शके छे, कोई कहे के आंख मींचीने विचार करीए त्यां तो
अंधकार देखाय छे, आत्मा नथी देखातो. –तो तेने कहे छे के भाई! आंख बंध करतां
“आ अंधारुं देखाय छे” –एम जाण्युं कोणे? –जाणनार कोण छे? जे जाणनार छे ते
कांई अंधकारस्वरूप नथी. जाणनार तो चैतन्य प्रकाश छे, ए ज तुं छो.
आत्मानी आ वात बधा समजी शके छे. सिंह वगेरे पशु पण समजी शके छे.