Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ९ः
अमदावादने आंगणे वीरप्रभुनो जन्मोत्सव
अमदावादनुं आंगणुं ने चैत्र सुद तेरसनो दिवस...त्यारे
रप६र वर्षने ओळंगीने गुरुदेवे प्रवचनमां वीरप्रभुना
जन्मोत्सवनो साक्षात्कार कराव्यो...वीरप्रभुना जीवननुं
भावभीनुं दर्शन कराव्युं...ने वीरहाकथी वीरप्रभुनो सन्देश
संभळाव्यो.
घडीकमां गद्यथी तो घडीकमां पद्यथी, घडीकमां वीरप्रभुना
जन्मनुं हालरडुं संभळावता, तो घडीकमां वीरप्रभुनी वीरहाक
संभळावता, एवी ए प्रवचननी धारा अद्भुत हती...ते
सांभळता त्रण चार हजार श्रोताजनो वीरप्रभु प्रत्येनी परम
भक्तिथी डोली रह्या हता...ने आवा उमंगभर्या वातावरणथी
वीरप्रभुनो जन्मोत्सव गुजरातना पाटनगरमां उजवायो हतो.
(सं. २०२०) (पूजन–भक्ति वगेरे कार्यक्रमो पण हता.) ते
दिवसनुं प्रवचन अहीं आप्युं छे.
आज भगवान महावीरना जन्मकल्याणकनो मंगळ दिवस छे. तेमणे आ भव
पहेलां ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानो साक्षात्कार करेलो, पछी उन्नति क्रममां आगळ वधतां
वधतां आ भवमां तेओ परमात्मा थया.
पूर्वना भवोमां हजी तेमने केवळज्ञान थयुं न हतुं पण सर्वज्ञस्वभावी
आत्मानुं भान हतुं, अनुभव हतो; ते भूमिकामां आत्माने साधतां साधतां, ने तेनी
पूर्णतानी भावना भावतां भावतां वच्चे एवी वृत्ति ऊठी के अहो, आवुं चैतन्यतत्त्व
जगतना बधा जीवो पण समजे; धर्मवृद्धि साथेना आवा शुभविकल्पथी तीर्थंकरप्रकृति
बंधाणी, जेम ऊंचा अनाज पाके त्यां घास पण घणा पाके छे, तेम धर्म ते तो कस छे,
ते धर्मनी साथे साथे साधकदशामां पुण्य पण अलौकिक पाके छे. एवा अलौकिक पुण्य
साथे भगवान महावीरनो आत्मा आ चैत्र सुद तेरसे भरतक्षेत्रमां अवतर्यो.
स्वर्गमांथी त्रिशला मातानी कुंखे आव्या त्यारे ज त्रण ज्ञान ने सम्यग्दर्शन तो साथे
ज लाव्या हता. आत्माना शांतरसना अनुभवनी दशा तो मातानी कुंखमां आव्या
त्यारे पण वर्तती हती.