Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः १पः
गि र ना र ना स न्तो
सौराष्ट्रनी धरतीना भूषणरूप आ उन्नत तीर्थधाममां अनेक संतोनी
आत्मसाधनाना रणकार गुंजी रह्या छेः पहेली टूंके गूफामांथी अर्जिकामाता
राजुलना वैराग्यना रणकार ऊठे छे; बीजी टूंके अनिरुद्धकुमार तपस्या करीने
मुक्ति पाम्या छे; त्रीजी टूंक शंबुकुमारना मोक्षगमनथी पावन थई छे; ऊंची ऊंची
चोथी टूंक प्रद्युम्नकुमारनी मोक्षसाधनानो सन्देश आपी रही छे; अने भगवान
नेमिनाथप्रभुना मोक्षकल्याणकथी पावन थयेली पांचमी टूंक भव्यजीवोने मोक्षनो
सन्देश आपी रही छे. आ उपरांत सहेसावनना शांत–अध्यात्म वातावरणमां
भगवाने वैराग्यनी अने ज्ञाननी जे आराधना करी तेना रणकार गूंजी रह्या
छे... एथी पण थोडा नजीक आवीए तो, भगवान धरसेन आचार्यदेवे
चंद्रगूफामां पुष्पदन्त–भूतबलि मुनिराजने जे पावन ज्ञान आप्युं तेनो नजरे
नीहाळेलो सन्देशो आ गिरनारपर्वत आजे आपी रह्यो छे...अने कुंदकुंदाचार्यदेवे
महान संघसहित सौराष्ट्रमां पधारीने आ तीर्थनी जे प्रभावशाळी यात्रा करी
तेनो इतिहास पण आ गिरनार आजे होंसथी संभळावी रह्यो छे. अने
ताजेतरमां (सं. १९९६, सं. २०१० तथा सं. २०१४मां) पू. श्री कहानगुरुए
पण विशाळ संघसहित आ पावनतीर्थधामनी यात्राओ करी, ने हमणां चैत्रमां
फरीने पण तेओश्री आ तीर्थधाममां दर्शन करी आव्या. सौराष्ट्रना भूषणस्वरूप
आ गिरनारना सर्वे संतोने भक्तिपूर्वक स्मरण करीने नमस्कार करीए
छीए...अने गुरुदेव साथेनी आ पवित्र साधनाभूमिनी यात्राना वैराग्यभर्या
मधुर संस्मरणो ज्ञान–वैराग्यनी ने आनंद–मंगलनी वृद्धिनुं कारण हो...एम
अंतरथी प्रार्थना करीए छीए.
“मुदित भावना” नुं वर्णन करतां भगवती
आराधनामां कहे छे के–सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–
सम्यक्चारित्र ने सम्यक्तप वगेरे गुणोना धारक
धर्मात्माने देखीने तथा चिंतवीने, मनथी–वचनथी
ने कायाथी आनंदरूप थवुं, तेमना दर्शन–
स्पर्शननी वांछा करवी, तेमना गुणोमां अनुराग
करवो, ते मुदितभावना छे.