
मारा धन्यभाग्य खील्यां...एम तेनुं हृदय रोमेरोमे भक्तिथी उल्लसी जाय...
करुणापूर्वक दानअधिकार वर्णव्यो छे. आचार्य संतोने कांई लक्ष्मी वगेरेनी जराय
अपेक्षा नथी, ते तो अपरिग्रही संत छे; पण धर्मबुद्धिवाळा जीवने धर्म प्रत्येनो केवो
उत्साह अने प्रेम होय,
Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).
PDF/HTML Page 23 of 83