
ने ते तरफना बहुमानथी दानादिनी केवी लागणी होय ते समजावे छे. भाई, जो देव–
गुरु–धर्मनो प्रेम करतां तने स्त्री, शरीर के लक्ष्मी वगेरेनो प्रेम वधी जाय तो तारी
रुचिनी दिशा कई तरफ छे? तेनो तुं विचार कर.
बताववुं छे.
तेथी मंगलाचरणमां तेओनुं स्मरण कर्युं छे. अहा, धन्य ते श्रेयांसकुमारनुं घर....के
ज्यां भगवान ऋषभनाथे मुनिदशामां पहेलो वहेलो आहार लीधो....साक्षात्
मोक्षमार्गरूपी कल्पवृक्ष जेना आंगणे फळ्युं–ते श्रेयांसना धवलयशनी शी वात!!
ऋषभदेव मुनि थया....छ महिना तो ज्ञान–ध्यानमां एवा मशगुल रह्या के आहारनी
वृत्ति न ऊठी....पछी आहारनी वृत्ति ऊठी पण मुनिने आहारदान देवानी रीत शुं छे–
तेनी कोइने खबर न हती....छ महिना पछी ज्यारे हस्तिनापुर नगरीमां पधार्या
त्यारे तेमने जोतां ज श्रेयांसकुमारने पूर्वना आठमा भवनुं जातिस्मरणज्ञान थइ गयुं
ने ते वखते ऋषभदेवना जीव (वज्रजंघ)नी साथे पोते (श्रीमति तरीके) मुनिओने
जे रीते आहारदान दीधेलुं तेनी विधिनुं भान थयुं ने नवधाभक्तिपूर्वक भगवानने
आहारदान दीधुं.
भाग्य! धन्य भाग्य!!
समस्त श्रुतज्ञान आराधनाथी भिन्न नथी,
समस्त श्रुतज्ञान आराधनानो विस्तार छे.