Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः १७ः
ने ते तरफना बहुमानथी दानादिनी केवी लागणी होय ते समजावे छे. भाई, जो देव–
गुरु–धर्मनो प्रेम करतां तने स्त्री, शरीर के लक्ष्मी वगेरेनो प्रेम वधी जाय तो तारी
रुचिनी दिशा कई तरफ छे? तेनो तुं विचार कर.
पोताना स्वरूपनो आनंद प्रगट करीने तेनुं परमार्थ दान जेणे लेवुं होय तेने
पहेलां पात्रतानी भूमिकामां देव–गुरु–धर्म प्रत्ये केवी भक्ति ने प्रेम होय? ते अहीं
बताववुं छे.
आ भरतक्षेत्रमां आ चोवीसीमां १८ क्रोडाक्रोडी सागरोपमना अंतरे विधिपूर्वक
दान लेनार भगवान ऋषभमुनिराज हता, ने दान देनार श्री श्रेयांसकुमार हता,
तेथी मंगलाचरणमां तेओनुं स्मरण कर्युं छे. अहा, धन्य ते श्रेयांसकुमारनुं घर....के
ज्यां भगवान ऋषभनाथे मुनिदशामां पहेलो वहेलो आहार लीधो....साक्षात्
मोक्षमार्गरूपी कल्पवृक्ष जेना आंगणे फळ्‌युं–ते श्रेयांसना धवलयशनी शी वात!!
ऋषभदेव मुनि थया....छ महिना तो ज्ञान–ध्यानमां एवा मशगुल रह्या के आहारनी
वृत्ति न ऊठी....पछी आहारनी वृत्ति ऊठी पण मुनिने आहारदान देवानी रीत शुं छे–
तेनी कोइने खबर न हती....छ महिना पछी ज्यारे हस्तिनापुर नगरीमां पधार्या
त्यारे तेमने जोतां ज श्रेयांसकुमारने पूर्वना आठमा भवनुं जातिस्मरणज्ञान थइ गयुं
ने ते वखते ऋषभदेवना जीव (वज्रजंघ)नी साथे पोते (श्रीमति तरीके) मुनिओने
जे रीते आहारदान दीधेलुं तेनी विधिनुं भान थयुं ने नवधाभक्तिपूर्वक भगवानने
आहारदान दीधुं.
ए धन्य दिवस हतो–वैशाख सुद त्रीज! ए वखते श्रेयांसकुमारने एम थयुं के
अहा! मारे आंगणे कल्पवृक्ष आव्युं....मारे आंगणे मोक्षमार्ग साक्षात् आव्यो. धन्य
भाग्य! धन्य भाग्य!!
समस्त श्रुतज्ञान आराधनाथी निबद्ध छे;
समस्त श्रुतज्ञान आराधनाथी भिन्न नथी,
समस्त श्रुतज्ञान आराधनानो विस्तार छे.
(भगवती आराधना पृ. ६९६)