
लूखाश नथी, परंतु तेमां तो कषायरहितपणानी शांति छे, ते निष्कषाय–स्वरूपनी
मस्तीथी भरपूर जीवन मोजमय छे, पवित्र छे; हा, तेमां कषायनो रंग नथी तेथी
अज्ञानीजीवोने ते शुष्क–लूखा जेवुं लागे–परंतु ना, ना, ते जीवन शुष्क नथी–लूखुं नथी.
ए पवित्र जीवन आत्मानंदनी अनेक क्रिडाओथी भरपूर छे.
आपनारां छे. ज्ञान वगरनो वैराग्य ते खरेखर वैराग्य नथी पण रूंधायेलो कषाय
छे; पण ज्ञान नहि होवाथी ते कषायने ओळखी शकातो नथी अने तेथी अज्ञानपणे
कषायमां (द्वेषमां) वैराग्यनी मान्यता थइ जाय छे, आने “
पोते वैराग्यनी मस्तीने ओळखे छे....अने वैराग्य छे ते ज्ञानने क्यांय फसावा देतुं
नथी पण बधाथी निस्पृह अने स्वनी मोजमां ज्ञानने टकावी राखे छे. ज्ञान सहितनुं
जीवन नियमथी वैराग्यमय ज होय छे; पण ज्ञानवगरना जीवने ते जीवन नीरस
जेवुं लागवा पण संभव छे केमके तेनामां ज्ञानने अने वैराग्यनी मस्तीने
पारखवानी ताकात नथी....ज्ञान पोते वैराग्यस्वरूप छे. ज्ञाननी सर्व मस्ती
वैराग्यथी ज भरपूर छे...