Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 25 of 83

background image
श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः १८ः वैशाख सुद २
वैराग्यमय जीवन
वैराग्यमय जीवनमां लूखाश नथी, पण पवित्र रस छे. जो जीवनमां लूखाश
लागे तो ते जीवन शूष्क छे, कषायथी रंगायेलुं छे, अने वैराग्यमय जीवनमां शुष्कता के
लूखाश नथी, परंतु तेमां तो कषायरहितपणानी शांति छे, ते निष्कषाय–स्वरूपनी
मस्तीथी भरपूर जीवन मोजमय छे, पवित्र छे; हा, तेमां कषायनो रंग नथी तेथी
अज्ञानीजीवोने ते शुष्क–लूखा जेवुं लागे–परंतु ना, ना, ते जीवन शुष्क नथी–लूखुं नथी.
ए पवित्र जीवन आत्मानंदनी अनेक क्रिडाओथी भरपूर छे.
जेने आत्मानंदनी खबर नथी ते वास्तविक वैराग्यमय जीवन नहि जीवी
शके.....
वैराग्य एकलो एकलो मस्ती नहि करी शके, पण जो वैराग्य साथे ज्ञान हशे
तो ज वैराग्यनी साची मस्ती जामशे....ज्ञान अने वैराग्य एकबीजाने प्रोत्साहन
आपनारां छे. ज्ञान वगरनो वैराग्य ते खरेखर वैराग्य नथी पण रूंधायेलो कषाय
छे; पण ज्ञान नहि होवाथी ते कषायने ओळखी शकातो नथी अने तेथी अज्ञानपणे
कषायमां (द्वेषमां) वैराग्यनी मान्यता थइ जाय छे, आने “
मोहगर्भित वैराग्य
पण कहेवाय छे.
ज्ञान छे ते कषायने बराबर ओळखी जाय छे, तेथी ज्यां ज्ञान होय त्यां
कषाय छूपाई शकतो नथी, अल्प होय ते प्रगट थइने नाशी जाय छे–एटले ज्ञान
पोते वैराग्यनी मस्तीने ओळखे छे....अने वैराग्य छे ते ज्ञानने क्यांय फसावा देतुं
नथी पण बधाथी निस्पृह अने स्वनी मोजमां ज्ञानने टकावी राखे छे. ज्ञान सहितनुं
जीवन नियमथी वैराग्यमय ज होय छे; पण ज्ञानवगरना जीवने ते जीवन नीरस
जेवुं लागवा पण संभव छे केमके तेनामां ज्ञानने अने वैराग्यनी मस्तीने
पारखवानी ताकात नथी....ज्ञान पोते वैराग्यस्वरूप छे. ज्ञाननी सर्व मस्ती
वैराग्यथी ज भरपूर छे...