Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः १९ः
जो जीवनमां ज्ञानमस्तीनो परम शांत रस न अनुभवाय अने खेद के निरसता
लागे तो समजवुं के त्यां सत्य ज्ञान वैराग्य नथी.
ज्ञान अने वैराग्यनी मस्तीओ सदा जीवनने जागृतीमय राखे छे–पण
कदापी जीवनमां मूंझारो आववा देती नथी. ज्ञानीना जीवनना दरेक प्रसंगो ज्ञान
अने वैराग्यथी ज भरपूर छे. ज्ञान छे ते सुखने साधे छे–अने वैराग्य छे ते
दुःखने दूर करे छे. ज्ञान अने वैराग्य एटले सर्वज्ञता अने वीतरागताना
साधको....
निरपेक्ष तत्त्वनी श्रद्धाने कोइनुं अवलंबन नथी. निरपेक्ष तत्त्वनी श्रद्धा
‘ज्ञानना उघाडनी’ अपेक्षा पण राखती नथी अने द्रव्य तरफ ढळता विकल्पनी अपेक्षा
पण ते श्रद्धा राखती नथी. ज्ञाननो उघाड अने विकल्प ए बन्नेनी उपेक्षा करीने
निरपेक्ष द्रव्यमां एकाकार थनारी श्रद्धा ते ज साची श्रद्धा छे. ज्यांसुधी कांइ पण
अपेक्षानुं लक्ष हशे त्यांसुधी निरपेक्षतत्त्व प्रतीतमां नहि आवे. निरपेक्षतत्त्व ते संपूर्ण
स्वाधीन छे–सर्वेनी अपेक्षाथी पार छे–ए तत्त्वनी प्रतीतमां अनंत पुरुषार्थ छे.
जगतना बधाय पदार्थोनी उपेक्षा करीने एक स्व तत्त्वने निरपेक्षपणे प्रतीतमां लेवुं ते
ज सम्यग्दर्शन छे.
जस्स द्रढा जिणभत्ति तस्स भयं णत्थि संसारे।।
जे पुरुषने जिनेन्द्रभगवानमां द्रढ भक्ति छे तेने
संसारमां भय नथी....केवी छे ते भक्ति? संसार
परिभ्रमणना भयरूप संवेगथी उपजेली छे, मिथ्यात्वादि
शल्यथी रहित छे, मेरुपर्वत समान निष्कंप छे; आवी
जिनभक्ति जेने थइ तेने संसारनो अभाव ज थयो.
(भगवती आराधना पृ. ३०२)