
छे”. परंतु स्व अपेक्षाए आत्मा कथंचित् अस्तिरूप छे–एम कहेवाय नहि. कोइ
कहे छे के स्याद्वादमां ‘ज’ होय नहि–तो एम नथी, स्याद्वादमां पण ज्यारे कोइ
एक खास अपेक्षाथी कथन करवुं होय त्यारे तेमां ‘ज’ लागु पडे छे. जेमके द्रव्य
अपेक्षाए जीव नित्य ज छे ने पर्याय अपेक्षाए ते अनित्य ज छे. जीव, स्वभाव
अपेक्षाए अस्तिरूप ज छे ने पर्याय अपेक्षाए नास्तिरूप ज छे. तेमां ‘ज’ होवा
छतां ते स्याद्वादनुं कथन छे, ते कांइ एकांतवाद थइ जतुं नथी.
निश्चय व्यवहारमां पण छे के–जे निश्चय छे ते निश्चयपणे ज अस्ति छे ने व्यवहारपणे
ते नथी ज, तथा जे व्यवहार छे ते व्यवहारपणे ज अस्तिरूप छे ने निश्चयपणे ते
नास्तिरूप ज छे, असत् ज छे.
निश्चय–