Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः २३ः
‘अरे, आ संसारमां मोहरूपी गेडीनो मार खाईखाईने दडानी माफक खूब
भटकया; हवे तो आत्मसाधन पूरुं करीने झट आ संसारथी छूटीए. श्री ऋषभदादा तो
केवळज्ञान सहित तीर्थंकरपदे बिराजे छे, पिताजी पण आ भवे मोक्ष पामवाना छे,
आपणे पण झट झट आ भवमां मुक्ति पामीने भगवान थवुं छे.’
वाह! नानकडा बाळको रमत वखते पण केवी सुंदर भावना करता हता.
(३)
रमत पूरी थया पछी त्यां बेठा बेठा बधा कुमारो धर्मचर्चा करता हता. सौथी
मोटा कुंवरनुं नाम रविकीर्तिराज हतुं, ने नाना कुंवरनुं नाम सूर्यराज हतुं, तेने चर्चानो
एवो शोख हतो के आखो दिवस धर्मचर्चा करे तोय थाके नहि. मोटाभाई तेने प्रश्न
पूछता हता, तेना ते जवाब आपतो हतो; ने बीजा कुमारो ते सांभळता हता.
रविकीर्तिः– आ गेडीदडानी रमतमांथी आपणने केटलुं सुख मळ्‌युं?
सूर्यराजः– एमांथी आपणने सुख मळे नहि.
रविकीर्तिः– ए रमतमां आपणने आनंद तो आव्यो?
सूर्यराजः– ए तो रागनो आनंद हतो, कांइ आत्मानो साचो आनंद ते न हतो.
रविकीर्तिः– गेडीदडामांथी सुख केम न आवे?
सूर्यराजः– केम के ते वस्तुमां सुख ज नथी.
रविकीर्तिः– तो सुख क्यां छे?
सूर्यराजः– सुख तो जीवमां छे.
रविकीर्तिः– जीव अने गेडीदडो एमां शुं फेर छे?
सूर्यराजः– जीवमां ज्ञान छे, अने गेडीदडामां ज्ञान नथी.
रविकीर्तिः– तो शुं आ जगतमां बे जातनी वस्तुओ छे?
सूर्यराजः– हा; एक ज्ञानवाळी, अने बीजी ज्ञान वगरनी, एम बे जातनी
वस्तुओ छे. ज्ञानवाळी जे वस्तु होय तेने ‘जीव’ कहेवाय छे. अने
ज्ञान वगरनी जे वस्तु होय तेने ‘अजीव’ कहेवाय छे.
रविकीर्तिः– जीव वस्तुमां ज्ञान सिवाय बीजुं कांइ छे?