
केवळज्ञान सहित तीर्थंकरपदे बिराजे छे, पिताजी पण आ भवे मोक्ष पामवाना छे,
आपणे पण झट झट आ भवमां मुक्ति पामीने भगवान थवुं छे.’
एवो शोख हतो के आखो दिवस धर्मचर्चा करे तोय थाके नहि. मोटाभाई तेने प्रश्न
पूछता हता, तेना ते जवाब आपतो हतो; ने बीजा कुमारो ते सांभळता हता.
सूर्यराजः– एमांथी आपणने सुख मळे नहि.
रविकीर्तिः– ए रमतमां आपणने आनंद तो आव्यो?
सूर्यराजः– ए तो रागनो आनंद हतो, कांइ आत्मानो साचो आनंद ते न हतो.
रविकीर्तिः– गेडीदडामांथी सुख केम न आवे?
सूर्यराजः– केम के ते वस्तुमां सुख ज नथी.
रविकीर्तिः– तो सुख क्यां छे?
सूर्यराजः– सुख तो जीवमां छे.
रविकीर्तिः– जीव अने गेडीदडो एमां शुं फेर छे?
सूर्यराजः– जीवमां ज्ञान छे, अने गेडीदडामां ज्ञान नथी.
रविकीर्तिः– तो शुं आ जगतमां बे जातनी वस्तुओ छे?
सूर्यराजः– हा; एक ज्ञानवाळी, अने बीजी ज्ञान वगरनी, एम बे जातनी
ज्ञान वगरनी जे वस्तु होय तेने ‘अजीव’ कहेवाय छे.