श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः २४ः वैशाख सुद २
सूर्यराजः– जीवमां ज्ञान साथे सुख छे, अस्तित्व छे, दर्शन छे; एवा तो पार
वगरना गुणो तेमां रहेला छे.
रविकीर्तिः– आ गेडीदडो तो अजीव वस्तु छे, तेनामां ज्ञान नथी, तो बीजुं कांइ
तेनामां हशे?
सूर्यराजः– हा. जीव के अजीव दरेक वस्तुमां गुणोनो समूह होय छे. गुणोना
समूहने ज वस्तु कहेवाय छे.
(४)
चर्चा सांभळीने बधा राजकुमारो बहु खुशी थया अने कहेवा लाग्या केः वाह!
आजे जीव अने अजीवनी बहु सरस चर्चा थई. अनंगराज! हवे तमे आखी चर्चानो
सार टूंकमां कहो.
अनंगराज कहेवा लाग्याः
जेनामां गुणोनो समूह होय तेने वस्तु कहेवाय छे.
वस्तुओ बे जातनी छे–एक जीव ने बीजी अजीव.
जीव वस्तुमां ज्ञान ने सुख होय छे.
अजीव वस्तुमां ज्ञान के सुख होतुं नथी.
जीवने ओळखवो नहि ने अजीव वस्तुने पोतानी मानवी ते अज्ञान छे;
ते अज्ञानने लीधे, आ दडानी माफक जीव चार गतिमां ज्यां त्यां भटके
छे. माटे दरेक जीवोए जीव अने अजीवनी ओळखाण करवी जोइए.
ए वात पूरी थइने बधा कुंवरो घरे जवानी तैयारी करवा लाग्याः एवामां दूरथी
एक घोडेस्वारने आ तरफ आवता जोईने तेओ ऊभा रह्या.
(प)
ते घोडेस्वारे नजीक आवीने समाचार आप्या के, हस्तिनापुरना राजा
जयकुमारे ऋषभदेवप्रभु पासे दीक्षा लीधी अने तेओ भगवानना गणधर थया. ते
जयकुमार भरतचक्रवर्तीना सेनापति हता, पोताना छ वर्षना कुंवरने राजतिलक
करीने तेमणे दीक्षा लइ लीधी. चक्रवर्तीनुं प्रधानपद छोडीने हवे तीर्थंकर भगवानना
प्रधान थया.