Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः २पः
घोडेस्वार पासेथी ए समाचार सांभळीने सौए कुमारोने एकदम आश्चर्य थयुंः
‘अहो, तेनुं जीवन धन्य छे’ एम कहीने तेने दूरथी नमस्कार कर्या; अने बधाय कुमारो
मनमां ने मनमां दीक्षा लेवानो विचार करवा लाग्या, ने ते माटे भगवानना दरबार
तरफ जवा लाग्या. आ बधाय कुमारो हजी कुंवारा छे, महान राजवैभव तेमने मळ्‌यो छे
पण ते भोगववानी लालसा नथी; तेओने तो मुक्ति लेवानी भावना छे अने ते माटे
दीक्षा लेवाने तैयार थया छे, ने नीचे मुजब भावना भावतां भावतां ऋषभदेवप्रभुना
धर्मदरबार तरफ तेओ जई रह्या छेः–
चालो दादाने दरबार....चालो प्रभुने दरबार....
प्रभुनी वाणी छूटे छे....आत्मस्वरूप देखाडे छे...
स्वरूप समजतां आनंद थाय....एमां ठरतां मुक्ति थाय...
चालो दादाने दरबार....
चालो प्रभुने दरबार....
अनंतगुणनो हुं भंडार....मारा मुक्तिमां घरबार....
मने गमे नहि संसार....मारे जावुं पेले पार....
चालो दादाने दरबार....
चालो प्रभुने दरबार....
सोए राजकुमार दीक्षा लेवा माटे ऋषभदादाना दरबारमां पहोंच्या; अने प्रभुजी
पासे दीक्षा लइने मुनि थया. शास्त्रमां आ सो राजकुमारोना दीक्षा प्रसंगनुं एवुं
अद्भूत वर्णन आवे छे के आत्मार्थी जीवने तो ते वांचतां ऊंडी वैराग्य भावनाओ
जागे छे, दीक्षा लीधी पछी ते १०० कुमार–मुनिओ आत्मध्यानमां मग्न थया; केटलाक
वखत सुधी आत्मध्याननो अभ्यास करतां तेओने केवळज्ञान प्रगट थयुं; तेओ बधाय
मुक्ति पाम्या, ने भगवान थया.
बाळको, जीव अने अजीव वस्तुनी साची ओळखाणपूर्वकना वैराग्यनुं
आ फळ छे, माटे तमे जीव अने अजीव वस्तुने बराबर ओळखजो
अने आ वैरागी राजकुमारोना आदर्शने तमारा जीवनमां उतारजो.