Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः २६ः वैशाख सुद २
अमृतनो अनुभव
(प्रवचनसार गा–११प ना प्रवचनमांथी)
भाई, तुं तारामां....पर परमां, सौ व्यवस्थितपणे पोतपोताना स्वरूपमां
सत्तपणे रहेलां छे, कोइ कोइमां डखलगीरी करी शकतुं नथी.
स्व स्वमां....ने पर परमां....एवुं भिन्नपणुं जाणनार जीव शांतिनो अनुभव
परमां शोधतो नथी पण स्व सन्मुख थइने पोतामां ज शांति अनुभवे छे. परमां जे
जीव शांति शोधे तेने शांतिनो अनुभव थइ शकतो नथी, केमके आ जीवनी शांति
परमां नथी.
जीव पोते पररूपे असत् छे–छतां त्यां पण जाणे पोतानी सत्ता होय–एम
मानीने जे तेनो कर्ता थवा जाय छे ते पोताना सत्ने भूलीने असत्ने सेवे छे एटले के
मिथ्यामान्यताने सेवे छे.
‘अनेकान्त’ तेने समजावे छे के रे भाई! तारुं सत् तारामां ने परनुं सत्
परमां; तारी सत्तामां पर नथी ने परनी सत्तामां तुं नथी. तो पर तारामां शुं करे?
आम स्वपरनी भिन्नभिन्न सत्ताने जाणीने तुं तारा सत् स्वरूपमां रहे. सत्नी श्रद्धा,
सत्नुं ज्ञान, ने सत्मां रमणता एम करतां तारा सत्मांथी केवळज्ञान ज्योत झबकी
उठशे. आनंदनो प्रवाह तारा सत्मांथी वहेशे. तारुं बधुं तारामांथी आवशे. परमांथी
तारे कांइ लेवुं पडे तेम नथी.
जगत आखाने तुं जाण खरो,–एवुं तारुं सामर्थ्य छे. पण ते सामर्थ्य वडे परमां
तुं कांइ करी शके नही. केमके तारुं सामर्थ्य परमां नथी;–तारुं अनंत अचिंत्य बेहद
सामर्थ्य होवा छतां ते सामर्थ्य तारामां ज समाय छे.
जडना एकेक रजकणमां तेना स्वरूपनुं अनंत सामर्थ्य छे, जगतमां कोइनी
ताकात नथी के तेना स्वरूपने बीजी रीते करी शके! जडनुं स्वरूप जडथी परिपूर्ण छे.
जीवनुं स्वरूप जीवथी परिपूर्ण छे. भाई तारुं स्वरूप ज्यां ताराथी ज परिपूर्ण छे त्यां
बीजा कोनी सामे तारे जोवुं छे? कोनी पासेथी तारे मदद लेवी छे? छोडी दे ए
पराश्रयनी बुद्धि! ने अंर्तमुख थइने तारा पूर्ण स्वरूपनो आश्रय कर. तेना आश्रये
तने तारा स्वरूपना आनंदनुं अचिंत्य अमृत अनुभवाशे.