Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 34 of 83

background image
श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः २७ः
“जैन–सन्देश”
(भगवाननो संदेश, भगवानना तेडा)
जेम कोई स्त्रीनो पति परदेशमां होय ने त्यांथी तेनो संदेश आवे तो केवी
होंशथी ते वांचे छे, तेम आ धर्मपिता त्रिलोकनाथ सर्वज्ञदेव सीमंधर परमात्मा
विदेहदेशमां बिराजे छे तेमनो संदेश छे, कुंदकुंदाचार्यदेव त्यां जइने भगवाननो
संदेशो लाव्या छे, भगवाननो कागळ लाग्या छे. तेमां भगवाननो एवो संदेशो छे
के–हे जीव! ज्ञानानंद स्वभावी आत्मा छे, जेवो अमारो आत्मा छे तेवो ज तारो
आत्मा छे. ए शुद्ध द्रव्यगुणपयार्यपणे तारा आत्माने ओळख तो तने सम्यग्दर्शन
थाय अने तारा मोहनो क्षय थइ जाय! अमे ए रीते मोहनो क्षय कर्यो छे ने ए
रीते मोहक्षय करीने तुं पण अमारा पंथे अमारा देशमां चाल्यो आव! आम
भगवानना संदेश आव्या छे (आम भगवानना तेडा आव्या छे)
जुओ, आ जैन सन्देश! रागथी धर्म थाय एवो भगवाननो सन्देश नथी एटले
के जैन सन्देश नथी. भूतार्थ स्वभावरूप एवो जे शुद्ध आत्मा तेना ज आश्रये
सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्र छे, माटे तेनो आश्रय करो एवो भगवाननो संदेश छे. ते ज
जैनसन्देश छे.
साधक जीवने पोताना स्वरूपनी लगनी लागी
छे, ते स्वरूपलगनीना मंडपमां सिद्धभगवंतोने आमंत्रे
छे के हे सिद्धभगवंतो! मारी मुक्तिना मंगल प्रसंगे
मारा आंगणे मारा चैतन्यमंडपमां पधारो...आपना
पधारवाथी मारा मंडपनी (–मारा श्रद्धा–ज्ञाननी)
शोभा वधशे.
–वैशाख सुद बीजना प्रवचनमांथी