Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ४१ः
अवसर तेने कयांथी आवशे? माटे आत्मार्थी जीवोए गमेतेवा क्षेत्रमां के गमेतेवी
प्रवृत्तिमां पण निरंतर अमुक वखत तो चोक्कसपणे सत्नी स्वाध्याय ने मनन
करवुं जोइए. ‘जाणे हुं तो जगतथी छूटो छुं, जगतनी साथे मारे कांइ संबंध नथी,
जगतना कोइ कामनो बोजो मारा उपर नथी, हुं तो असंग चैतन्यतत्त्व छुं’–आ
प्रमाणे, निवृत्त थइने घडी–बे घडी पण पोताना आत्मानुं चिंतन–मनन करवुं
जोइए. सत्पुरुषनी वाणीनुं वारंवार अंतरमां चिंतन अने मनन करवुं ते
अनुभवनो उपाय छे.
* * *
मुनिदर्शननी भावना
वे मुनिवर कब मिलि है उपगारी.......।।टेक।।
साधु दिगंबर नगन निरम्बर, संवर भूषणधारी....वे मुनि....(१)
कंचन–काच बराबर जिनके, ज्यों रिपु त्यों हितकारी,
महल मसान, मरन अरू जीवन, सम गरिमा अरू गारी....वे मुनि...(२)
सम्यक्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी,
शोधत जीव–सुवर्ण सदा जे, काय–कारिमा टाळी....वे मुनि...(३)
जोरी जुगल कर भूधर विनवे, तिन पद ढोक हमारी,
भाग उदय दरसन जब पाउं, ता दिनकी बलिहारी....वे मुनि....(४)