
स्वसंवेदनथी जाणनार एवो प्रत्यक्षज्ञाता आत्मा छे, पहेला पांच बोलमां इन्द्रियो के
एकलुं अनुमान वगेरे व्यवहार काढी नाख्यो, ने आ छठ्ठा बोलमां हवे प्रत्यक्षज्ञाता
कहीने अस्तिथी वात करी छे.
महिमा घूंटता घूंटता तारा निर्णयमां एम आवे के अहो! मारी आ वस्तु ज स्वयं
परिपूर्णज्ञानानंदस्वरूप छे,–आवा निर्णयथी अंतर्मुख थतां स्वसंवेदनवडे आत्मा
प्रत्यक्षज्ञाता थइ जाय छे;–एनुं नाम सम्यग्दर्शन छे, ते पूर्णताना पंथे चडयो, तेणे
परमात्मानो साक्षात्कार कर्यो, ते वीर थइने वीरना मार्गे वळ्यो,–आ छे भगवान
महावीरनो सन्देश!
लक्षमां लेतां ते अनुभवमां आवे–तेनुं नाम धर्म छे. आ सिवाय बीजा झगडामां
रूकावट थाय ते पंथमां आडखीलीरूप छे. तारा ज्ञान ने आनंदनुं तने प्रत्यक्ष वेदन
थाय–ते न जणाय एवुं नथी, प्रत्यक्षज्ञाता थइने आत्मा पोते स्वसंवेदनथी पोताने
जाणे छे. पहेला पांच बोलमां इन्द्रियो वगेरेनो निषेध करीने छठ्ठा बोलमां
स्वभाववडे जाणे एम कहीने तेने प्रत्यक्षज्ञाता कह्यो. आत्मा पोते इन्द्रियोनी
अपेक्षा वगर, मनना के विकल्पना अवलंबन वगर स्वभावथी ज स्वसंवेदनवडे
पोताने जाणे छे.
उपयोगवडे बहारनुं घणुं जाण्युं के घणा शास्त्र वांच्या माटे हवे उपयोगने अंतरमां
वाळवानुं सहेलुं पडशे–एम नथी. उपयोगने आत्मानुं अवलंबन छे, शास्त्रना
अवलंबनवाळो उपयोग ते खरो उपयोग नथी. तेमां परावलंबन छे. तेमां उपयोगनी
हानी छे. उपयोग पोतानो ने अवलंबन करे एकला परनुं–तो एवा उपयोगने
आत्मानो उपयोग कोण कहे? उपयोग अंतरमां वळीने आत्मद्रव्यनुं अवलंबन करे ते
ज खरो उपयोग छे. तेमां ज आत्मानुं ग्रहण छे. आत्मानुं घर छोडीने एकला परघरमां
ज फरे–तो एवी