Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ४पः
स्वसंवेदनथी जाणनार एवो प्रत्यक्षज्ञाता आत्मा छे, पहेला पांच बोलमां इन्द्रियो के
एकलुं अनुमान वगेरे व्यवहार काढी नाख्यो, ने आ छठ्ठा बोलमां हवे प्रत्यक्षज्ञाता
कहीने अस्तिथी वात करी छे.
वर्तमान पर्यायनी स्फुरणामां निर्णयनुं जोर न आवे त्यांसुधी ते अंतर्मुख थइ
शके नहि. स्वसंवेदनथी स्वयं प्रकाशे एवो स्वयंप्रकाशी आत्मा छे. भाई, चैतन्यनो
महिमा घूंटता घूंटता तारा निर्णयमां एम आवे के अहो! मारी आ वस्तु ज स्वयं
परिपूर्णज्ञानानंदस्वरूप छे,–आवा निर्णयथी अंतर्मुख थतां स्वसंवेदनवडे आत्मा
प्रत्यक्षज्ञाता थइ जाय छे;–एनुं नाम सम्यग्दर्शन छे, ते पूर्णताना पंथे चडयो, तेणे
परमात्मानो साक्षात्कार कर्यो, ते वीर थइने वीरना मार्गे वळ्‌यो,–आ छे भगवान
महावीरनो सन्देश!
भाई, बहारनुं बधुं एकवार भूली, अंतरवस्तुनो निर्णय करवामां एवुं
जोर लाव के द्रष्टि अंतरमां वळे....स्वभावनुं घणुं घणुं महात्म्य अने अधिकाइ
लक्षमां लेतां ते अनुभवमां आवे–
तेनुं नाम धर्म छे. आ सिवाय बीजा झगडामां
रूकावट थाय ते पंथमां आडखीलीरूप छे. तारा ज्ञान ने आनंदनुं तने प्रत्यक्ष वेदन
थाय–ते न जणाय एवुं नथी, प्रत्यक्षज्ञाता थइने आत्मा पोते स्वसंवेदनथी पोताने
जाणे छे. पहेला पांच बोलमां इन्द्रियो वगेरेनो निषेध करीने छठ्ठा बोलमां
स्वभाववडे जाणे एम कहीने तेने प्रत्यक्षज्ञाता कह्यो. आत्मा पोते इन्द्रियोनी
अपेक्षा वगर, मनना के विकल्पना अवलंबन वगर स्वभावथी ज स्वसंवेदनवडे
पोताने जाणे छे.
उपयोग ते आत्मानुं चिह्न छे. ते उपयोग नामना लक्षणमां ज्ञेयोनुं अवलंबन
नथी, पण ते उपयोग आत्माने ज अवलंबीने काम करे एवो तेनो स्वभाव छे.
उपयोगवडे बहारनुं घणुं जाण्युं के घणा शास्त्र वांच्या माटे हवे उपयोगने अंतरमां
वाळवानुं सहेलुं पडशे–एम नथी. उपयोगने आत्मानुं अवलंबन छे, शास्त्रना
अवलंबनवाळो उपयोग ते खरो उपयोग नथी. तेमां परावलंबन छे. तेमां उपयोगनी
हानी छे. उपयोग पोतानो ने अवलंबन करे एकला परनुं–तो एवा उपयोगने
आत्मानो उपयोग कोण कहे? उपयोग अंतरमां वळीने आत्मद्रव्यनुं अवलंबन करे ते
ज खरो उपयोग छे. तेमां ज आत्मानुं ग्रहण छे. आत्मानुं घर छोडीने एकला परघरमां
ज फरे–तो एवी