Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः ४६ः वैशाख सुद २
परिणतिने शास्त्रो व्यभिचारिणीबुद्धि कहे छे. भाई उपयोगने अंतरमां वाळ्‌या
वगर त्रण काळमां सम्यग्दर्शन थतुं नथी. आथी कांइ शास्त्रना अभ्यासनो निषेध
नथी, पण एकला शास्त्रना अभ्यासथी जे धर्म मानी लेतो हो–ने उपयोगने
अंतरमां वाळवानो उद्यम न करतो होय–तो तेने कहे छे के ऊभो रहे.–एम
एकला शास्त्रथी धर्म नहि थाय; उपयोगने अंतरमां वाळीने आत्माने लक्षमां
लीधा वगर कदी धर्म थाय नहीं. उपयोगने अंतरमां पण न वाळे ने शास्त्रनो
अभ्यास पण छोडी द्ये–तो तो स्वच्छंदी थइने अशुभमां जशे. भले एकला
शास्त्रथी अंतरमां नथी जवातुं पण जेने आत्माना अनुभवनो प्रेम होय तेने
तेना अभ्यास माटे शास्त्राभ्यास, उपदेशश्रवण वगेरेनो पण प्रेम आवे छे,–बन्ने
पडखांनो विवेक करवो जोईए.
उपयोगने परावलंबनथी छोडावीने, अंतरमां चैतन्यना अवलंबने पूर्णता
साधी. भगवान वीरे आ काम कर्युं ने जगतने पण ए ज सन्देश आप्यो. अहो,
अनादिना विकारनो अंत करी नाख्यो; ने अप्रतिहत निर्मळ दशा प्रगट करी. जे
सदाकाळ स्वालंबने एमने एम अनंत अनंतकाळ टकी रहेशे. आवुं भगवान वीरे कर्युं
ने तेनो ज उपदेश आप्यो. आ रीते मोक्षने साधीने मोक्षनो पंथ बताव्यो तेथी
भगवानना जन्मनो उत्सव उजवाय छे.
वीरप्रभुए उपयोगने अंतर्मुख करीने, आत्मिक वीरता वडे मोक्षदशा साधी,
अने उपदेशमां पण ए ज मार्गनी हाकल करी, के हे जीवो! तमारा उपयोगने अंतरमां
वाळीने आत्माने स्वसंवेदन प्रत्यक्ष करो. जुओ, आ वीरहाक! आ छे वीरप्रभुनो
सन्देश.
वीरहाकवडे वीरसन्देश संभळावीने वीरशासननी वृद्धि करनार
कहान गुरुदेवनो जय हो...
आत्मा ज आनंदधाम छे, विषयोनुं त्यां शुं काम छे?
शरण आतमराम छे, त्यां बीजानुं शुं काम छे?