
आराधक संतना निमित्ते तीर्थ बन्युं होय छे. तो पछी आराधक संत पोते साक्षात्
बिराजता होय–ते स्थान तो तीर्थधाम बने एमां शुं आश्चर्य! ज्यां धर्मात्मा बिराजे छे
त्यां तीर्थ ज छे, एनी वाणी पण तीर्थ छे. अहा, आवा तीर्थ, अने एमनी साथे ज
तीर्थयात्रा,–एम डबल तीर्थनी प्राप्तिथी मुमुक्षुना हर्षनी शी वात! विश्वना श्रेष्ठ
सुयोगनी प्राप्तिथी आनंदित थयेलो मुमुक्षु भवोभवनां बंधनने क्षणमां भेदी नांखे छे ने
साधकभावनो पुरुषार्थ उपाडे छे.
तीर्थयात्रानी खरी मोज अवारनवार आपणने चखाडीने गुरुदेवे जीवनभर याद
रही जाय एवो जे आनंद कराव्यो छे ने हजी करावी रह्या छे. ते खरेखर तेओश्रीनो
महान उपकार छे.
भवना अभाव माटे मळ्यो छे. आ भव, भवने
वधारवा माटे होइ शके नहीं. अरे आ भवमां भवनो
अभाव न कर्यो तो क्यारे करीश? भवना अभावरूप
भववुं–एटले के मोक्ष तरफ परिणमवुं ते आ भवमां
करवानुं छे.