Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः प६ः वैशाख सुद २
आराधक संतना निमित्ते तीर्थ बन्युं होय छे. तो पछी आराधक संत पोते साक्षात्
बिराजता होय–ते स्थान तो तीर्थधाम बने एमां शुं आश्चर्य! ज्यां धर्मात्मा बिराजे छे
त्यां तीर्थ ज छे, एनी वाणी पण तीर्थ छे. अहा, आवा तीर्थ, अने एमनी साथे ज
तीर्थयात्रा,–एम डबल तीर्थनी प्राप्तिथी मुमुक्षुना हर्षनी शी वात! विश्वना श्रेष्ठ
सुयोगनी प्राप्तिथी आनंदित थयेलो मुमुक्षु भवोभवनां बंधनने क्षणमां भेदी नांखे छे ने
साधकभावनो पुरुषार्थ उपाडे छे.
सन्तो अने तीर्थोनो गमे तेटलो महिमा करीए पण एमना साक्षात्
सेवनवडे ज खरो लाभ पामी शकाय छे. संतसमागमनी ने तेमनी साथेनी
तीर्थयात्रानी खरी मोज अवारनवार आपणने चखाडीने गुरुदेवे जीवनभर याद
रही जाय एवो जे आनंद कराव्यो छे ने हजी करावी रह्या छे. ते खरेखर तेओश्रीनो
महान उपकार छे.
(अभिनंदन–गं्रथमांथी)
भवना अभाव माटेनो भव
गुरुदेव घणा भावथी कहे छे केः आ एक भव अनंत
भवना अभाव माटे मळ्‌यो छे. आ भव, भवने
वधारवा माटे होइ शके नहीं. अरे आ भवमां भवनो
अभाव न कर्यो तो क्यारे करीश? भवना अभावरूप
भववुं–एटले के मोक्ष तरफ परिणमवुं ते आ भवमां
करवानुं छे.